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प्राचार्य चरितावली
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स्वर्गवास सुन गोष्ठामाहिल पाये, . प्राकर पूछा गरगधर किसे बनाये।
हुई हकीकत कही संघ ने सारी ।। लेकर० ।।११।। अर्थः-नवनिर्वाचित प्राचार्य और मुनिगण को शिक्षा देकर आर्य रक्षित अनशनपूर्वक स्वर्गस्थ हो गये । गोष्ठामाहिल भी आचार्य का स्वर्गवास सुन कर आये । गणाचार्य के लिये पूछा तो ज्ञात हुआ कि दुर्वलिका को आचार्य ने गणाचार्य नियुक्त किया है। संघ से इस विषय की सव जानकारी गोप्ठामाहिल को मिली ॥११॥
लावरणी॥ सुन कर वार्ता पृथक् स्थान स्वीकारा, कहा सभी ने पर नहीं एक विचारा। सूत्रवाचना करे अलग मनभादै, अर्थ पौरसी मे न श्रवण को प्रावे ।
गणनायक से मन में रखता खारी ।। ले कर० ।।१२०॥ अर्थः-सघ से सारी वस्तु स्थिति जानकर गोष्ठामाहिल को खेद हुआ । वे सबके कहने पर भी वहाँ नही ठहर कर अलग उपाश्रय मे ठहरे। सूत्र पोरसी में स्वाध्याय अलग करते और अर्थ पोरसी मे भी गणाचार्य के पास सुनने को नहीं पाते । गणाचार्य से मन मे द्वेष रखने लगे । सचमुच मोह का तीव्र उदय वडे-बडे ज्ञानियो को भी चक्कर मे डाल देता है ॥१२०॥
॥ लावणी ।। गणो के पीछे विध्य वाचना करते, पूर्व आठवां वे भी पा वहां सुनते । मोह उदय से उल्टी मत ली भाली, प्रात्मा का नहीं होता बंध निहाली।
विध्य मुनि ने सूरि को कह डारी ॥ ले कर० ॥१२१॥ अर्थ :--गणाचार्य की वाचना हो जाने के बाद जब विध्य मुनि अर्थ