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________________ आचार्य चरितावनी मुनिवर की ऐसी अटल निस्पृहता देखकर उन सवको बड़ा आश्चर्य हुआ ||९६ || लावणी ।। धन्य महा मुनिराज धीर व्रत धारी, विपतकाल मे रखा साहस भारी। सावज्ज पथ कागमन दिया है टारी, जावें हम उनके चरणों बलिहारी। वजूसेन उनके थे पट अधिकारी ॥ लेकर० ॥१०॥ अर्थः--ऐसे ज्ञान क्रिया के धनी निस्पृह मुनि को धन्य है जिन्होंने एक समय दुप्काल पीडित क्षेत्र में विहार करते हुए शुद्ध भिक्षा न मिलने पर भी धीरज नही खोया । एव सावद्य मार्ग का उपयोग भी नहीं किया बल्कि इसके बदले मे अनशनपूर्वक प्राण त्याग करना श्रेष्ठ समझा। ऐसे त्यागी संतो की वार-वार वलिहारी है। . इनके पट्ट पर वज्रसेन प्राचार्य हुए। आर्य वज़ का भविष्य सूचन और जिनदत्त की दीक्षा ॥ लावणी ॥ कालदोष लख वज़सेन से बोले, लक्ष पाक भोजन मे जो विष घोले । अगले दिन ही दुकाल बाधा मिटसी, सो पारक मे धर्मलाभ भी मिलसी । पुत्र चार संग जिनदत्त दीक्षा धारी ।। लेकर० ॥१०१॥ अर्थः-आचार्य आर्य वज्र ने देश में व्याप्त भयकर दुष्काल की उस समय की स्थिति को देखकर वज्रसेन के सामने भविष्य वाणी की कि जब किसी को तुम लक्षपाक भोजन मे विप मिलाते देखो, तब दूसरे ही दिन तुम दुष्काल का अत समझना, देश देशान्तर से उनको प्रभूत अन्न पहुँच जावेगा।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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