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श्राचार्य चरितावली
सीमंधर प्रभु ने कहा -"मुनि आर्य रक्षित मेरे समान ही निगोद का भाव जानने वाला है ।" यह सुनकर प्रतीति करने के लिए केन्द एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाकर मथुरा नगरी पाया और मुनि आर्य रक्षित को एकाकी देख पूछने लगा-"प्रभो! मेरी आयु कितनी है ?" ८६-६०॥
॥ लावणी ॥ पूर्वो मे उपयोग लगा जब जाने, लखा शताधिक वय को अधिक प्रमाणे। सुर या मान चितन से सब जाना, . भमुह उठा कर बोले शक्र पिछाना।
सत्य जानकर पड़ा चरण मंझारीले कर०॥४१॥ अर्थ:-प्राचार्य आर्य रक्षित ने पूर्वो में उपयोग लगाकर देखा तो ज्ञात हुआ कि इसकी वय शत से कही बहुत अधिक है तो यह शंका हुई कि यह देव है या मानव ? नजर उठा कर देखा तो ज्ञात हुआ कि यह तो सागर की स्थिति वाला इन्द्र होना चाहिये । सत्य समझ कर इन्द्र भी प्राचार्य के चरणो मे गिर पड़ा ।।१।।
|| लाचरणी ।। निगोद की पृच्छा के भाव सुनाये, भरत खण्ड का गौरव इन्द्र मनाये। क्षरण भर ठहरो, देख मुनि स्थिर होगे, सुरपति बोले निदान वे कर लेंगे।
आर्य कथन से चिन्ह बदल दिये द्वारी ॥ लेकर० ॥१२॥ अर्थ-पृच्छा करने पर प्राचार्य ने उन्हे विस्तृत विवेचन सहित निगोट के भाव सुनाये । इन्द्र ने इनको भारतवर्प का गौरव माना । जव नमस्कार कर इन्द्र जाने लगा तव प्राचार्य वोले-"जरा क्षरण भर ठहरो, जब तक छोटे मुनि भी आ जायं । आपको देखकर उनकी श्रद्धा दृढ होगी।"
___ इन्द्र ने कहा--"कदाचित् मेरे ठहरने से वे निदान न करले