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________________ ( ६ ) प्रस्तुत पुस्तक मे आज के युग के एक महान सन्त पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज साहब द्वारा आचार्यो के पावन चरित बडे भाव भरे पद्य में अत्यन्त मनोहारी लोक-शैली के माध्यम से प्रस्तुत किये गये हैं । आचार्य श्री ने भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर प्रार्य सुधर्मा स्वामी से अथाह चरित्रो का इस छोटी सी सागर को गागर मे भर देने की युग प्रवर्तक प्राचार्यो के चित्रण कर वास्तव मे प्रारम्भ कर आज तक के पुस्तक मे संक्षिप्त - सजीव असाव्य कहावत को चरितार्थ कर दिया है | पूज्य श्री की वारणी व लेखनी से प्रकट हुआ प्रत्येक शब्द, प्रत्येक भाव वस्तुतः अमर सतवाणी है, जिसके सम्पादन की कोई आवश्यकता नही रहती ग्रत. इस सम्पादन कार्य को में अपने लिये पूज्य श्री की असीम कृपा का प्रसाद हो सम झता हूँ । गुड़ के प्रथम रसास्वादन के आनंन्द को अभिव्यंजना करने में असमर्थ गूंगे व्यक्ति द्वारा अपने त्रियजनो के समक्ष गुड प्रस्तुत करते समय जो उसकी स्थिति होती हैं, ठीक वही स्थिति मेरी भी अपने इस प्रथम संम्पादित कृति को पाठको के समक्ष प्रस्तुत करने में हो रही है । भक्तिपरक होने के कारण इस पुस्तक का बहुत बड़ा प्राध्यात्मिक महत्त्व तो है ही परन्तु ढाई हजार वर्ष की प्राचार्य परम्परा के व खलाबद्ध सक्षिप्त इतिहास का आचार्य श्री ने वडी कुशलता के साथ इसमे आलेख किया है, अत इस काव्य का ऐतिहासिक दृष्टि से भी बडा महत्व है । मैंने इस पुस्तक का अनेक बार लय के साथ पाठ किया है और मेरी यह निश्चित वारणा है कि यह काव्य स्वल्प समय मे ही जन-जन का कण्ठाभरण वन जायगा । अन्त मे यह निवेदन करना चाहूंगा कि यह पुस्तक मुझे जितनी अधिक प्रिय है उतना अधिक समय, एक अन्य कार्य मे अत्यधिक व्यस्त रहने के काररण, इसकी शुद्ध छपाई आदि को चोर में विशेष ध्यान नही दे सका हूँ प्रत. इसके सम्पादन में रही त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । - गजसिंह राठोड़
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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