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आचार्य चरितावली
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अर्थः-आर्य मंगू के शिष्य नंदिल गणी हुए। ये आर्य रक्षित की परम्परा के ह पूर्वो के ज्ञाता थे। आप वैरोट्या देवी के प्रतिवोधक कहलाये और ज्ञान चरण की आराधना मे बडे कुशल समझे गये । आपका समय विक्रम संवत् दो का है ।।४।।
लावरणी॥ आर्य नागहस्ती नंदिल के पटधर, शत पर सोलह परम प्रायु के श्रुतधर । वाचक वंश की उज्ज्वल साख पुराई, पांच पूर्व का रहा ज्ञान कहे भाई ।
छ सौ निवासी में सुर हुए अवतारी लेकर०॥५०॥ अर्थः-आर्य नदिल के पट्टधर आर्य नागहस्ती हुए । आप बड़े श्रुतधर थे। आपकी परम आयु ११६ वर्ष की थी। आपने वाचक वंश की विमल प्रतिष्ठा मे चार चाद लगाये । आपके समय तक पाँच पूर्वो का ज्ञान विद्यमान था। कहा जाता है कि वीर संवत् ६८६ में आप स्वर्गवासी हुए ॥५०॥
लावरणी॥ आर्य रेवती नागहस्ती के पटधर, ' पूर्ण आयु शत पर नव प्रति सुखकर । वीर काल अष्टम शत वर्ष अड़तालो, वाचकव श की शोभा को उजवालो।
हुए अठारह पाट विमल यशधारी लेकर०॥५१॥ अर्थः-आर्य नागहस्ती के पट्ट पर आर्य रेवती हुए। आपकी आयु १०६ वर्ष की थी । वीर सवत् ७४८ मे वाचक वश की शोभा वढा कर आप स्वर्ग पधारे। इस प्रकार विमल यश वाले आप अठारहवे प्राचार्य थे ।।५१॥
लावरणी।। प्रार्य सिंह रेवती के पट्ट विराजे, नवमी सदी का प्रथम चरण शुभ छाजे ।