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श्राचार्य चरितावली
त. पुर में ले आया । इस प्रकार उसने जिन शासन के प्रति बड़ा द्रोह किया । सघ के विनयपूर्वक निवेदन करने पर भी उसने साध्वी को नही छोड़ा । तव प्रार्य कालक को वडा दुख हुआ और उन्होने शको की सहायता से गर्दभिल्ल को युद्ध मे हराकर साध्वी को मुक्त कराया, बाद में उन्होंने प्रायश्चित्त से अपनी शुद्धि की ॥४७॥
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( तपा प० गाथा ४ की टि०) ॥ लावणी ॥
आर्य श्याम के पटधर मंडिल राजे, अष्टोत्तर शत को शुभ वय में छाजे । चार शती चवदह में गरण दीपाया, मुनि समुद्र को अपने पद बिठलाया । चतुष्पंचाशत् में हुए सुर अधिकारी || लेकर ० ||४८ ॥
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अर्थ :- श्रार्य श्याम के पट्टधर शाडिल्य प्राचार्य हुए। इनकी शुभ आयु १०८ वर्ष की थी । वीर संवत् ४१४ मे गासन को दिपा कर आपने आर्य समुद्र को अपने पट्ट पर बिठाया । ४५४ मे आप स्वर्ग के अधिकारी हो गये ||४८||
॥रा०||
समुद्र के पट्ट मंगू देखो, ज्ञान क्रिया के
धारी हैं।
श्रुत सागर के पार कररण को, प्रतिभा बल विस्तारी हैं ||७||
अर्थ. - आर्य समुद्र के पट्ट पर प्राचार्य मगू हुए | ये ज्ञान क्रिया के धारक थे । श्रुत समुद्र को पार करने के लिए उन्होने अपने प्रतिभा वल को खूब वढाया था ॥७॥
॥ लावणी ॥ श्रार्य मगू के पट्ट गरणी नवपूर्वी रक्षित के सत वैरोट्या के प्रतिबोधक ज्ञान चरण में उद्यत कह बतलाये । 'विक्रम सम्वत् दो का है काल विचारी ॥ लेकर० ॥४६॥
नंदिल हैं,
सबल हैं । कहलाये,