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________________ आचार्य चरितावली कठिन साधना से शासन शोभाये । गिरि सम अविचल सहे परीषह भारी लेकर०॥४३॥ अर्थः-आर्य महागिरि ३० वर्प घर मे रहे और ७० वर्ष तक संयम साधन किया। जिसमे ४० वर्प की सामान्य साधना के पश्चात् आचार्य वन कर ३० वर्ष तक शासन का संचालन किया । कुल १०० वर्ष की आयु भोग कर स्वर्ग वासी हुए । कठिन तप की साधना करके आपने जिन शासन की शोभा बढाई । परिपहो के सहने मे आप मेरुगिरि सम अचल रहे । सचमुच आपका महागिरि नाम सार्थक रहा था ।।४।। ॥लावरणी॥ संयम में शैथिल्य तभी घुस पाया, शाखाओं का उदय संघ में छाया । उत्तर बलिसह गरण को शाखा जानो, महागिरि के स्थविर पाठ पहिचानो। सुहस्ती से बड़ी साख विस्तारी । लेकर० ।।४४।। अर्थः-आर्य सुहस्ती के समय मे ही सयमाचार मे शिथिलता का प्रवेश होने लगा और यही से शाखायो का सच मे उदय हुआ। महागिरि के शिप्य वलिसह से उत्तर वलिसह शाखा प्रकट हुई और सुस्थित से कौटिक गच्छ प्रकट हुआ। महागिरि के पाठ शिप्य स्थविर कहलाये । इसी तरह सुहस्ती से सुस्थित सुप्रतिवुद्ध आदि रूप मे वडी शाखा चली, जो अधिक प्रसार पाई ॥४४॥ लावणी || स्वाति और श्यामार्य हुए व्रतधारो, त्रिशत छिहत्तर हुए स्वर्ग अधिकारी। बहुल बलिस्सह गिरि के पटघर जानो, सुस्थित से कौटिकगण उदय पिछानो । प्राठ पाट निथ नाम था जहारी ॥लेकर०॥४५।। अर्थः-आर्य वलिस्सह के स्वाति मनि और स्वाति के श्यामाचार्य हुए । वीर संवत् ६७६ में स्वाति के शिष्य श्यामाचार्य का स्वर्गवास हुआ।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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