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________________ प्राचार्य चरितावली २४ २४ सुहस्ती का गणनायक पद पाना । पाटलिपुर मे दोनो मुनि चल पाये, वसुभति के घर उपदेश सुनाये। भिक्षा हित गिरि भी पाये उस वारी । लेकर० ॥४१॥ अर्थः-महागिरि की यह विशेपता कही जा चुकी है कि उन्होने कठोर आचार की साधना के लिये एकलविहार पडिमा का साधन चालू किया और गण व्यवस्था का काम प्रार्य मुहस्ती को संभलाया। किसी समय दोनो विचरते हुए पाटलिपुर मा गये। एक बार आर्य सुहस्ती वसुभूति सेठ के यहा उसके परिवार को प्रतिबोध देने उपदेश कर रहे थे, उसी समय भिक्षा हेतु महागिरि भी वहां आ पहुँचे ।।४।। लावणी ।। सुहस्ती ने विनयभाव दरसाया, त्याज्य अन्न लेते परिचय बतलाया। जगी सेठ मन भक्ति स्वजन जतलाये, त्याज्य वताकर देना भाव सवाये । स्वजनों ने भी ऐसी की तय्यारी ॥ लेकर० ॥४२॥ अर्थः- आर्य मुहस्ती ने आर्य महागिरि को आते देख कर विनय से आदर दिया और सेठ के पूछने पर महागिरि के तपस्वी जीवन का परिचय देते हुए कहा कि ये गृहस्थ के यहां डाले जाने वाले असार आहार को ही लेते है । वडे तपस्वी है । यह सुन कर सेठ के मन मे भक्ति जगी और उसने स्वजन वर्ग को जतलाया कि आर्य के आने पर तुम त्याज्य बता कर उत्तम 'भोजन प्रेम से देना । सेठ के कथनानुसार स्वजनो ने भी ऐसी ही तैयारी ‘की ॥४॥ लावणी।। तीस वर्ष गृहवास संयमी सित्तर, चालीस वत्सर बाद तीस पदवीघर । पूर्ण शतायु होकर स्वर्ग सिधाये,
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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