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श्रचाय चरितावली
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करने शिष्य गुरु के पास गया । उस समय नदी मे से जाने के कारण उसको नीचे से ठंडा और ऊपर से उष्णताप का वेदन हो रहा था ||३६||
॥ लावणी ॥
एक समय दो वेदन देख विचारा, क्रिया दोय नहि बाघक मन में धारा । समय सूक्ष्म उपयोग भेद किम जाने,
पद्मपत्र शतदल भेदन सम जाने ।
ज्ञानी के वच श्रद्धा लो मन धारी ॥ लेकर० ||३६||
अर्थ :- गंग मुनि को एक समय मे दो वेदना देख कर मन से विचार हुआ कि एक समय मे दो वेदन नही होने का सिद्धान्त ठीक नही । मुनि ने समय की सूक्ष्मता का विचार नही किया । कमल के सहस्र पत्र एक साथ भेदन करने पर भी वस्तुतः एक के बाद एक कमल का भेदन भिन्न-भिन्न समय मे होता है । ऐसे उष्ण वेदना के समय शीत का और शीत के समय उपण वेदना का उपयोग नही होता। एक समय में एक ही उपयोग होता है, दो नही । क्योकि समय सूक्ष्म है | अतः ज्ञानी के वचन पर श्रद्धा करना उचित है ||३७||
||लावरणी ॥
गुरु वचनों से समझ नही जब आई, सघ बाह्य की तब श्राज्ञा सुनवाई | राजगृही में नागमणी तट श्रये, मरगीनाग ने श्रनुशासित करवाये । गुरु सेवा में
पहुंच आत्मा तारी ॥ लेकर० ||३८||
अर्थ :- गंग मुनि जव गुरु के समझाने पर भी समझ नही पाया, तव उसे सघ बाह्य घोषित कर दिया । किसी दिन घूमते हुए मुनि राजगृही आये और मरिनाग यक्ष के देवालय पर ठहरे । मणिनाग यक्ष सम्यक् दृष्टि था । अतः उसने मुनि को समझाया और बतलाया कि मैने भी प्रभु से ऐसा ही सुना है अतः जायो गुरुदेव से क्षमा मांग कर पुनेः जिन वचनानुसार स्थिर मन से सयम का पालन करते रहो ||३८||