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पात्रायं चरितावली
सही मार्ग ___ अर्थः-बुद्धिवाद से अपनी बात इच्छानुसार बैठाई जा सकती हैं पर उससे मतभेद का अन्त नही होता । विश्व मे शान्ति तो समतावाद से ही आ सकती है । सम्यक् अनेकान्तवाद ही सब जन के लिये सुखकारी हो सकता है। यदि उसको अपना लिया जाय तो अविद्या की सारी आंधी छिन्न-भिन्न हो सकती है ।।२००।
|| लाचरणी ।। शुक्लांवर, आकाशाम्वर, ज्ञान पुजारी, तेरापंथ अरु निश्चयनय के धारी । सरलभाव से अपनी शाख चलावे, पर भीतर मे झगडा नही दिखावे । धर्मनीति की शिक्षा दे मिल प्यारी ॥ लेकर० ॥२०१॥
सम्प्रदायो का कर्तव्य - 'अर्थ:--"जैसी दृष्टि नैसी सृष्टि" इस कहावत के अनुसार हर प्राचार्ग ने अपनी दृष्टि के अनुसार शास्त्र के आधार से मार्ग पकडा और उसी को सत्य समझ कर प्रचार करने लगे। फलस्वरूप कोई श्वेताम्बर, कोई दिगम्बर, कोई ज्ञानवादी-कविपंथ, तेरापथ, निश्चयवादी-आत्मधर्मी आदि सम्प्रदाये चल पडी। जिनशासन की शोभा और विश्वहित की दृष्टि से यह परमावश्यक है कि वे सब सरलभाव से अपनी शाखाए चलाना चाहे तो चलाने पर भीतर मे रागद्वेप बढ़ा कर एक दूसरे की निदा नही करे अपने को ऊंचा और दूसरे को नीचा नही दिखाये। सामान्यजनो मे मिल जुल कर अहिसा, सत्य, सदाचार की शिक्षा देकर धर्म को पुष्ट करे ॥२०॥
लावरगी। सद् विचार रक्षरण से जनमन भावे, टकरा कर अपनी ह शक्ति गमावे।