SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य चरितावली १११ अर्थः-एक बार फिर आशा की किरण प्रकट हुई, क्योकि आचारनिष्ठ संयोजक प्रानन्द ऋषिजी महाराज साहव के नेतृत्व मे काम हो रहा था । लोग दूर दूर से आशा लिये आये और मुनियो ने भी ऋपिजी के चरणों में अपने भाव सुनाये । कार्यवाही का आरम्भ उपाध्याय हस्ती मलजी की तालिका से ही किया गया। सम्मेलन के नियमो का आज तक कैसा पालन हुआ, उसकी झाकी प्रस्तुत की गई। सवको अपनी बात रखने का मौका मिला । पर अलग अलग ग्रुप बने हुए थे, स घ-शुद्धि और शिथिलाचार निवारण की वात श्रावक म घ की ओर से भी रखी गई पर भविष्य की हिदायत देने के अतिरिक्त कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया । हा, शास्त्रीय प्रवर्तक पद और गण व्यवस्था मान ली गई। सघ को चलाने हेतु वडे ठाट से उपाध्याय ग्रानन्द ऋपिजी महाराज को आचार्य पद पर आरूढ कर मगल समारोह की समाप्ति कर दी गई। लावरणी।। प्रानन्द के शासन मे संयम दीपे, उज्वल अनुशासन से पर दल जीपे । गणाधिकारी निज अधिकार निभाते, मुनिजन अपना नैतिक धर्म बजाते । तो आशा हो जाती सफल हमारी।। लेकर० ॥१६३।। अर्थः-आचार्य आनन्द ऋषि जी के शासन मे श्रमणसव का सयम ददीप्यमान होकर चमकेगा और व्यवस्थित अनुशासन से श्रमणसंघ से अलग रहने वाले भी प्रभावित होगे, ऐसी आशा थी । प्रत्येक गण के प्रवर्तक निष्ठापूर्वक अपना अधिकार निभाते और साधु-साध्वी वर्ग अपना नैतिक कर्तव्य अदा करते तो अवश्य ही हमारी आशा सफल होती, पर हुआ इससे विल्कुल विपरीत । संघ मे संगठन का दिखावा मात्र रहा, सयमशुद्धि और अनुशासन की भावना निकल गई ॥१६३॥
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy