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श्रावायं चरिनाची
सम्बन्ध मे हिनचिन्तकों के मन में बड़ी चिन्ता उत्पनस्थितिको सुलझाने के लिये उपाध्याय श्री हग्निमनजी ने सोचा कि उदयपुर जा कर उपाचार्य श्री की कुछ मर्ज किया जाय मानका को कोशिश की जाय। उन्होंने उपाचार्य श्री से वार्ता की एवं नमन घ मे रह कर कार्य करने की प्रार्थना की।
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॥ लावणी ॥
बेठने पाई.
अशुभ योग नह बात श्रावक जन भी रहे न मुख्य सहाई । श्रमरणसघ में कैसे हो दृढ़ताई, सभल चले व भी इसमें चतुराई ।
अजरामर में किया मिलन फिर जहारी || लेकर०||१६||
अर्थ - स योग को बात, उपाचार्य श्री के साथ बातचीत में सफलता
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नही मिलो, श्रावक वर्ग की ओर से महकार मिलने की आशा थी पर वह भी जैसा चाहिये, वैसा नहीं मिल सका । परसर को भ्रान्ति से अधिकारियो के मन मे टूटा हुआ प्रेम का धागा फिर से जोड़ कर श्रमण सव को शक्तिशाली कैसे बनाया जाय, यह विचार चल रहा था । पर इसी बीच शिथिलाचार और अनुशासनहीनता ने संघ में पार्टी खड़ी करदी श्रमणो के पारस्परिक सबंध शिथिल हो गये । परामर्श समिति के सो जक उपाध्याय ग्रानन्द ऋषिजी महाराज साहब ने अजमेर मे फिर सम्मेलन की घोषणा की।
॥ लावणी ॥
आश लिये जन दूर दूर से आये, ऋषिवर के चरणो मे भाव सुनाये | समाधान हित सबको अवसर दोना, संघ शुद्धि हित ठोस कदम नहीं लीना । आचारज पद का हुआ उत्सव भारी || लेकर ० ||१२||