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श्रावकाचार : १०७
सरलता एवं सादगी आती है तथा व्यक्ति को महारम्भ, महापरिग्रह तथा महातृष्णा से मुक्ति मिलती है । शास्त्रकारों ने उपभोग परिभोग सम्बन्धी २६ प्रकार की वस्तुओ की गिनती की है | श्रावक को इन वस्तुओ की तथा इनके अतिरिक्त और भी जितनी वस्तुएं उसके काम मे आती हो उन सबकी मर्यादा निश्चित कर लेनी चाहिए जिससे उसके जीवन मे हमेशा शान्ति एव सन्तोप विद्यमान रहे । मर्यादा निश्चित करने मे विवेक का विशेष उपयोग करना चाहिए | जिनमे अधिक हिंसा ओर प्रपंच की सम्भावना हो उन पदार्थो का त्याग करना चाहिए तथा अल्पारम्भ व अल्प प्रपचयुक्त वस्तुओ का मर्यादापूर्वक सेवन करना चाहिए । उपभोगपरिभोगसम्बन्धी वस्तुओ के २६ प्रकार ये हैं : १ शरीर श्रादि पोछने का अंगोछा आदि, २ दाँत साफ करने का मजन आदि, ३ फल, ४ मालिश के लिए तेल आदि, ५. उवटन के लिए लेप आदि, ६ स्नान के लिए जल, ७. पहनने के वस्त्र, ८. विलेपन के लिए चन्दन आदि, ९. फूल, १०. आभरण, ११. धूप-दीप, १२ पेय, १३. पक्वान्न, १४. ओदन, १५ सूप अर्थात् दाल, १६. घृत आदि विगय, १७. शाक, १८. माधुरक अर्थात् मेवा, १९ जेमन अर्थात् भोजन के पदार्थ, २०. पीने का पानी, २१ मुखवास, २२ वाहन, २३. उपानत् अर्थात् जूता, २४ शय्यासन २५ सचित्त वस्तु, २६ खाने के अन्य पदार्थ |
उपभोगपरिभोग-परिमाण व्रत के भी पांच प्रधान प्रतिचार हैं : १ सचित्ताहार, २ सचित्त- प्रतिवद्धाहार, ३ अपक्वाहार, ४ दुष्पक्वाहार, ५ तुच्छौपधिभक्षण | ये अतिचार भोजन