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प्रस्तुत ग्रन्थ में
५-२५
१. जैनाचार की भूमिका
आचार और विचार वैदिक दृष्टि औपनिपदिक रूप सूत्र, स्मृतियाँ व धर्मशास्त्र कर्ममुक्ति आत्मविकास कर्मपथ जैनाचार व जैन विचार कमबन्ध व कर्ममुक्ति आत्मवाद अहिंसा और अपरिग्रह अनेकान्तदृष्टि दृष्टि से चारित्र-विकास आत्मिक विकास मोहशक्ति की प्रबलता मिथ्या दृष्टि अल्पकालीन सम्यक् दृष्टि मिश्र दृष्टि ग्रथिभेद व सम्यक् श्रद्धा देशविरति मर्वविरति अप्रमत्त अवस्था
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