________________ 8888sassogssssss 00 083838880 00 00 passSaad V -00 001 Oasses अभिप्राय .. ", OBesarmeag * जैनसाहित्य के सम्बन्ध मे इन्हों (जैनाचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ) ने बतलाया है, कि जैनसाहित्य का ख़ज़ाना बहुत बड़ा है। कोई भी ऐसा विषय नहीं है है कि जिस पर जैनधर्म मे पुस्तकें न मिलती हों। भारत के , सिवाय युरोप वगैरह देशों मे भी बहुत जैनग्रंथ उपलब्ध हैं। इन्होंने संक्षेप मे जैनधर्म का इतिहास बतलाते हुए यह ॐ भी कहा है कि जैनधर्म मे अमुक अमुक चक्रवर्ती राजा हुए हैं। अन्त में जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त . अहिंसा परमो धर्मः की व्याख्या करते हुए यह कहा कि दुनिया की भविष्य की समस्याएं इसी सिद्धान्त द्वारा हल हो सकती हैं। ....... ... * : , इनका निबन्ध बहुत ही उत्तम और स्पष्ट था। एक एक विषय पर बहुत ही सरलता से प्रकाश डाला गया / था। इसीलिये जनता ने इस निबन्ध को ध्यानपूर्वक / सुना और पसन्द किया। अन्त मे इन्होंने धार्मिक वैमनस्य को भूल जाने के लिये अपील करते हुए अपना निबन्ध पूर्ण किया। - ' "तेज", दिल्ली उर्दू दैनिक ता.: 18-2-25 __ -मथुरा में दयानन्दशताब्दिों के अवसर पर - सर्व-धर्म / * परिषद् में पढे गये निबन्ध पर अभिप्राय / ' .. 10 00 In -00 00 00 00 00. Bossessss pp 00 00 /