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अर्थात् जैन लोग बहुत विस्तृत लोकोपयोगी (लोग भोग्य ) साहित्य के स्रष्टा हैं ।
प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, हिन्दी तथा तामिल भाषा में भी जैनसाहित्य पुष्कल लिखा हुआ है ।
श्रीमद् सिद्धसेनदिवाकर, श्रीमद् हरिभद्रसूरि, श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य, उपाध्याय यशोविजयजी, उपाध्याय विनयविजय जी आदि अनेक जैनाचार्यों ने जैनसाहित्य को समृद्ध बनाने मे अपने जीवन को व्यतीत किया है।
अंतिम २५-३० वर्षो से जब से जैनसाहित्य विशेष प्रचार मे आने लगा है तब से इंगलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, इटली और चीन में जैनसाहित्य का खूब प्रचार हो रहा है । आज तो स्वर्गस्थ गुरुदेव जैनाचार्य श्रीमद् विजयधर्मसूरि महाराज के महान कार्यों से अनेक विद्वान देश देश मे जैनसाहित्य का अभ्यास और प्रचार कर रहे हैं ।
मेरा दृढ़ निश्चय है कि जैसे जैसे जैनसाहित्य अधिक प्रमाण मे पढा जायगा एवं तुलनात्मक दृष्टि से इसका अभ्यास किया जायगा वैसे वैसे इसमे से मधुर सुगंधी जगत के रंग मंडप मे फैलती जायगी जिससे कि जगत में वास्तविक अहिंसाधर्म का प्रचार होगा ।
जैन इतिहास -- कला |
जैन तथा अजैन विद्वानों का ध्यान जैनइतिहास की तरफ़ अभी तक इतना आकर्षित नहीं हुआ जितना कि होना चाहिए