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धर्मकथानुयोग, चरणकग्णानुयोग इन चार विभागों में विभाजित है। ___ गणित सम्बन्धी चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, तथा लोकप्रकाशादि ग्रंथ इतने अपूर्व हैं कि उनमे सूर्य, चन्द्र, तारा मंडल, असंख्य द्वीप, समुद्र, स्वर्गलोक, नरकभूमियों वगैरह की बहुत बातों का वर्णन मिलता है। ___ हीरसौभाग्य, विजयप्रशस्ति, धर्मशर्माभ्युदय, हम्मीर महाकाव्य, पार्वाभ्युदय कान्य, यशस्तिलक चम्मू इत्यादि काव्य ग्रंथ , सन्मतितर्क, स्याद्वादरत्नाकार, अनेकान्तजयपताका आदि न्याय ग्रंथ , योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय वगैरह योग ग्रंथ , ज्ञानसार, अध्यात्मसार, अध्यात्मकल्पद्रुम आदि आध्यात्मिक ग्रंथ , सिद्धहेमचन्द्र आदि व्याकरण ग्रंथ , आज भी सुप्रसिद्ध हैं। प्राकृतसाहित्य मे ऊँचे से ऊँचा साहित्य यदि किसी में है तो वह जैनदर्शन में ही है। जैन न्याय, जैनतत्त्व ज्ञान, जैननीति, तथा अन्य अन्य विषयों के गद्य-पद्य के अनेक उत्तमोत्तम ग्रंथ जैनसाहित्य मे भरे पड़े हैं। ___ व्याकरण तथा कथासाहित्य तो जैनसाहित्य मे अद्वितीय ही है। जैनस्तोत्र, स्तुतिया, पुरानी गुजराती भाषा के रास आदि अनेक दिशाओं मे जैनसाहित्य फैला हुआ है। जैन साहित्य के लिये प्रो० जोहन्स हर्टल लिखता है कि :
They (Jains) are the creators of very extensive popular literature.