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हिन्दी के नाटककार का चटा-चटाकर जलना और उसमें चिराँहिन की सुगंध निकलना...।" यह वर्णन हास्य उत्पन्न न करके, वीभत्स ही उत्पन्न करेगा। .. राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द पर व्यक्तिगत कारणों से उनका व्यंग्य करना भी ठीक नहीं:
"सरकार अंग्रेज के राज्य में जो उन लोगों के चित्तानुसार उदारता करता है उसको 'स्टार आफ इण्डिया' की उपाधि मिलती है।"-यह व्यंग्य शिवप्रसाद के ऊपर ही है। व्यक्तिगत कारणों से किसी पर व्यंग्य करना कला का दुरुपयोग है।
प्रम का स्वरूप भारतेन्दु रसिक, सुकवि और प्रेमी जीव थे। प्रेम-पद्धति के विषय में उनके 'चन्द्रावली' तथा 'विद्या सुन्दर' नाटकों को उपस्थित किया जा सकता है। प्रेम प्रायः चार प्रकार का होता है-(१) विवाह के पश्चात् विकसित होने वाला, जैसे रामायण का प्रेम । सीता और राम का प्रेम विवाह के बाद से प्रारम्भ होकर वन-जीवन में विकसित हुया। यह स्वाभाविक, शुद्ध, सात्विक तथा स्वच्छ है । (२) विवाह से पूर्व उत्पन्न होने वाला और विवाह जिसका परिणाम होता है, जैसे शकुन्तला, विक्रमोर्वशी का प्रेम या आजकल की लघु-कथाओं में वर्णित प्रेम । (३) राजाओं के महलों-उद्यानों में पनपने वाला प्रेम, और (४) गुण-श्रवण, चित्र-दर्शन, स्वप्न आदि में भेंट होने से उत्पन्न प्रेम; जैसे प्रेम-गाथाओं-पद्मावत, मृगावती, मधुमालती श्रादि का ।
_ विद्या सुन्दर' का प्रेम चौथे प्रकार का प्रेम है। हीरा मालिन के द्वारा विद्या अपने होने वाले पति के रूप-गुण को सुनते ही प्रेम में तड़पने लगती है और परम्परा के अनुसार वियोग में छटपटातो हुई गाने लगती है :
"चढ़ावत मो पै काम कमान वेधत है जिय मारि-मारि के
तानि स्रवन लगि बान।" मालिन भी विद्या के पूर्वानुराग को जानकर कहती है : “वाह ! वाह ! यह अनुराग हम नहीं जानती थीं।" ___ एक स्थान पर विद्या मालिन से कहती है : 'मैं तो उसे (सुन्दर को) उसी दिन वर चुकी, जिस दिन उसका आगमन सुना और उसी दिन उसे तन-मन-धन दे चुकी, जिस दिन उसका दर्शन हुआ।"
• 'विद्या सुन्दर' का प्रेम सुफी ढङ्ग का पूर्वानुराग ही है, यही प्रेम में परिवर्तित हो जाता है। अन्त में विवाह इस प्रेम का सुखद परिणाम होता