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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी में नया सन्देश लेकर आए। रीतिकालीन अवसाद-डूबी निशा के अन्धकार में हिन्दी ऊँघ रही थी। ऐसे समय एक ऐसी प्रतिभाशाली विभूति की श्रावश्यकता थी, जो उसे जगाकर नये मार्ग पर अग्रसर करे । नई शिक्षा, पश्चिमी साहित्य और विचार-धारा का प्रभाव जनता पर पड़ रहा था-उसके विचारों में गतिशील परिवर्तन आ रहा था, पर हिन्दी-पाहित्य जीवन से बहुत दूर जा पड़ा था। भारतेन्दु ने उसे जीवन के साथ मिलाया । उन्होंने साहित्य को नया जीवन दिया, नई गति दी, और हाथ में स्वयं प्रकाश-जगमग मशाल लेकर उसे नये मार्ग पर चलायानई दिशा की ओर मोड़ा। उनकी प्रतिभा के मानसरोवर से वाणी की निर्मल, स्वच्छ और गतिशील मंदाकिनी बह निकली, जिसने साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र को सींचा-जो विभिन्न धाराओं में बह चली। ___ भाषा का उन्होंने संस्कार किया, नवीन भावों की संजीवनी उसे दी, कला के विभिन्न रूपों में उसका निखरा और सार्थक प्रयोग किया। वह वर्तमान हिन्दी-गद्य के प्रवर्तक के रूप में प्रकट हुए । भारतेन्दुजी ने शैली की ओर भी ध्यान दिया । तथ्य-निरूपण की गम्भीर और श्रावेशमयी सशक्त शैलियों की भी प्रतिष्ठा की। __ अाधुनिक गद्य-परम्परा का प्रवर्तन भारतेन्दुजी के नाटकों से होता है। भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी में नाटक थे ही नहीं, यह ही पहले मौलिक और स्मरणीय नाटककार हुए । नाटकों के रूप में भारतेन्दुजी की भेंट अपने और प्रसाद से पूर्व काल तक अद्वितीय है। भारतेन्दु ने अपने नाटकों द्वारा बहुमुखी सृजन किया । देश-भक्ति की सोई श्राग को जगाया, नई शिक्षा के स्वस्थ रूप को अपनाया । साहित्य, शैली, भाषा सभी की अनुपम रचना की।
भारतेन्दु ने मौलिक प्रहसन तथा नाटक भी लिखे और अन्य भाषाओं