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आलोक
नाटककार को प्रान्तक्ति किये है । दुःखान्त नाटक लिखने के लिए नाटकीय दिग्य प्रतिभा अपेक्षित है, वह अभी किसी नाटककार में प्रकट नहीं हुई। तलवारें चलवाना, घोड़े दौड़ाना, देश का नाम ले-लेकर गौरव का बखान करना कठिन नहीं, कठिन है एक लर्क, मजदुर, किसान, अध्यापक के करुण जीवन से सामाजिकों को ऑनु प्रों में याना । कठिन काम में हाथ क्यों डाला जाय-असफलता का खतरा । ऐसा ही काम क्यों न चुना जाय, जिसमें सफजता की गारण्टी हो।
हिन्दी-नाटक-विकास __हिन्दी-नाटक-परम्परा, अनूदित और मौलिक दोनों रूपों में, संस्कृतनाटकों के प्रभाव और प्रेरणा से प्रारम्भ हुई। जोधपुर के महाराज जसवन्तसिंह ने संस्कृत से व्रजभाषा में 'प्रबोध-चन्द्रोदय' का अनुवाद, संवत् १७०० वि० में किया । इसके पचास वर्ष बाद रीवा-नरेश विश्वनाथसिंह ने 'अानन्द रघुनन्दन' लिखा । ये दोनों रचनाएं हिन्दी में सर्व प्रथम अनूदित और मौलिक नाटक हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र श्रापने पिता गोपालचन्द्र-रचित 'नहुष' को सर्व प्रथम नाटक मानते हैं। इसमें पात्रों के प्रवेश-स्थान प्रादि का नियम पालन हा है। 'नहप' सर्व प्रथम नाटक भी माना जाय, तो भी उससे नाटकीय परम्परा नहीं चली। ___हिन्दी-नाटक-परम्परा का प्रारम्भ अनुवादोंसे ही हुआ । राजा ल घमणसिंह ने सम्बत् १६ १६ वि० में 'अभिज्ञान शाकुन्तल' का हिन्दी-अनुवाद किया। इसके पाँच-छः वर्ष बाद भारतेन्दु जी ने संस्कृत से 'रत्नावली' का अनुवाद
और "गला से 'विद्यासुन्दर' का रूपान्तर प्रस्तुत किया। इसके बाद उनके 'पाखण्ड-विडम्बन', 'धनब्जय-विजय', 'कपूर-मंजरी', 'मुद्राराक्षस'-अनूदित; 'चन्द्रावली', 'भारत-जननी', भारत-दुर्दशा', 'नीलदेवी', 'वैदिकी हिंसाहिंसा न भवति', 'सती प्रताप', 'विषस्य विषमौषधम्'---मौलिक और 'सत्यहरिश्चन्द्र'-रूपान्तरित नाटकों का उदय हुआ। भारतेन्दु जी की सर्व प्रथम मौलिक रचना 'वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति' है। इसकी रचना-सम्बत् १९३० वि० में हुई। __भारतेन्दु-युग में और भी लेखकों ने नाटेक लिखे । 'भारत-सौभाग्य' (प्रेमघन ), 'तिरिया तेल हमीर हठ चढे न दूजो बार' (प्रतापनरायण मिश्र), 'महारानी पद्मावती' तथा 'महाराणा प्रताप' ( राधाकृष्णदास ), 'रणधीर प्रेम मोहिनी' (श्रीनिवासदास), 'प्रणयनी-प्रणय' और 'मयंक-मंजरी' (किशोरीलाल