________________
रंगमंचीय नाटककार
२६३ यह भी है कि ये पारसी-रंगमंचीय नाटकों से प्रभावित नहीं। वह अस्वाभाविकता इनमें नहीं आ पाई -वह चमत्कारिता भी नहीं, गीत इन नाटकों में तनिक हल्के हैं । 'श्रवण कुमार' की भाषा-शैली भी इन्हीं के समान है, पर वह इतना सफल नहीं बन सका। माखनलाल चतुर्वेदी
चतुर्वेदी जी ने १६१८ ई० में 'कृष्णार्जुन-युद्ध' नामक नाटक लिखा । इस नाटक में रंगमन्त्रीय आवश्यकताओं और सरलताओं का बड़ा ध्यान रखा गया है। इसका अभिनय अनेक बार सफलता के साथ हो चुका है। इस नाटक में साहित्यिकता और अभिनेयता दोनों में कमाल की सफलता लेखक को मिली है। 'कृष्णार्जुन युद्ध' की कथा पौराणिक है, पर इसमें वर्तमान जीवन विशेषकर राजनीति का जो सुन्दर चित्र मिलता है, वह तात्कालिक अन्य नाटकों में नहीं मिलता। नाटक में गालव ऋषि के शिष्य शशि और शंख के द्वारा हास्य की भी अच्छी योजना को गई है। चरित्र-चित्रण की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया है। सुभद्रा के चरित्र में वैयक्तिक निजीपन है, केवल हिन्दू नारीत्व ही नहीं। 'कृष्णार्जुन-युद्ध' हिन्दी के रंगमञ्चीय नाटकों में विशेष सम्मान का स्थान प्राप्त कर चुका है। जमनादास मेहरा __ श्री मेहरा ने अनेक रंगमंचीय नाटकों की रचना की। इनका उद्देश्य था हिन्दी में रंगमंच की उन्नति करना। व्यवसायी मण्डलियों से धन कमाने के लिए इन्होंने रचना नहीं की। अव्यवसायी मण्डलियों, साहित्यसमाजों, स्वतंत्र रूप से उत्साही जन-मण्डलों द्वारा इनके नाटकों का अभिनय बड़ी सफलता से किया गया। इनके नाटकों की रचना का समय १६२१ से १६३२ ईस्वी तक माना जा सकता है । इनका सबसे प्रथम नाटक 'विश्वामित्र' १६२१ ई० में लिखा गया था। इसके सिवा 'हिन्द', 'देवयानी', 'जवानी की भूल', 'कन्या-विक्रय', 'विपद-कसौटी', 'कृष्ण-सुदामा', 'भक्तचन्द्रहास', 'पाप-परिणाम', 'मोरध्वज', 'पंजाब-केसरी', 'सती-चिन्ता', 'भारत-पुत्र,' 'हिन्दू-कन्या', 'वसन्त-प्रभा' आदि १५ नाटकों की रचना की। __नाटकों के नामों से ही इनकी विभिन्नता और विस्तृत क्षेत्र तथा काल का पता चलता है । 'विश्वामित्र' 'कृष्ण-सुदामा' 'देवयानी' आदि पौराणिक नाटक हैं। 'जवानी की भूल', 'कन्या-विक्रय', हिन्दू-कन्या' आदि वर्तमान जीवन-सम्बन्धी नाटक हैं । पंजाब केसरी' ऐतिहासिक नाटक है। 'जवानी