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फुटकर
बेचन शर्मा उग्र
उग्रजी ने 'महात्मा ईमा' ( १६२२ ) और 'गंगा का बेटा' (१६४० ) दोन लिखे । 'महात्मा ईसा' प्रसाद की सांस्कृतिक गंगा की ही एक धारा है- - यह भी भारतीय सांस्कृतिक चेतना का एक स्फुल्लिंग है । ईसा के चरित्र में अतिमानवता, हिंसा, शान्ति, विश्व-प्रेम, जन-कल्याण आदि की दिव्य भावनाएं' कूट-कूटकर भरी हैं। वह इस विश्व में मानवता और करुणा का सन्देश लेकर आता है ।
'महात्मा ईसा' ऐतिहासिक सत्य है । पर इतिहास का इसमें केवल आधारमात्र ही है, उसका पूर्ण निर्वाह नहीं । इसके अतिरिक्त ईसा के जीवन के विषय में बहुत-सी बातें ऐतिहासिक न होकर काल्पनिक श्रद्धा के पेट से ही उत्पन्न हुई हैं, इसलिए इतिहास की सचाई का निर्वाद इसमें होना कठिन है । बहुत-से लोगों का मत हैं कि ईसा भारत में आये थे - यहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त की र बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का उन पर प्रभाव पड़ा। इसी विश्वास को आधार मानकर लेखक ने पहले ही दृश्य में उनका काशी में प्रवेश करा दिया है | विवेकाचार्य से वह शिक्षा ग्रहण करते हैं, पर यह विवेकाचार्य भी तो प्रतीकनाम ही है।
वैसे नाटक चरित्र - प्रधान है, तो भी इसमें चरित्रों का उत्थान-पतन विकासहास नहीं मिलता। ईसा के जीवन में द्वन्द्वन हीं है - दुविधा नहीं है । वह आदर्श चरित्र है - प्रतिमानव है। इसी प्रकार 'महात्मा ईसा " की शान्तिप्रायः निष्क्रिय और अन्तर्द्वन्द्वहीन है-सीधी, सरल, आदर्श मार्ग पर चलने वाली | नाटक में भाषा का प्रौढ़ रूप मिलता है । उसमें प्रवाद, चुस्ती, गतिशीलता, प्रभावोत्पादकता - सभी कुछ गुण हैं । नाटक में जीवन के हासविलास, शृङ्गार - सजावट भी पर्याप्त मात्रा में है । 'यदि सौन्दर्य भोजनीय