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हिन्दी के नाटककार ने अपने पात्रों को दिये हैं, वे वर्तमान समाज के जीवित गुण-दोष हैं। श्रीमती अशोक, श्रीमती राजेन्द्र, उमा आधुनिक नारी के रूप हैं। रात को दो बार बच्ची को दूध पिलाने उठने पर श्रीमती अशोक इतनी अस्वस्थ हो गई कि खाना नहीं बनाया जा सकता, पर उसी शाम को कंसर्ट देखने जाया जा सकता है। श्रीमती राजेन्द्र अपने बच्चे को ज्वर में बेसुध छोड़कर कंसर्ट में नृत्य के लिए जाती है। जाते-जाते कहती है अपने पति से, "मैं सोचती हूँ, यदि आप भी आज चल सकते। चौधरी साहब कहते थे कि पहले से मैंने बहुत उन्नति की है। डॉक्टर जो बताये, उसकी सूचना मुझे भिजवा देना । भूलना नहीं, मुझे चिन्ता रहेगी।" __इससे श्रीमती राजेन्द्र का चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 'कैद' और 'उड़ान' में पात्रों के रूप में समाज की बहुत ही जीवित और सिसकती तस्वीरें हैं। 'कैद' की अप्पी विवश दमघुटी नारी है। उसके चरित्र में लेखक ने बहुत अच्छा रंग भरा है। दिलीप से उसका प्रेम है, उस पर श्रद्धा है, श्रादर हैएक अमर आकर्षण है। और यह सब लेखक ने बहुत ही उभरे-दबे रूप में दिखा दिया है। दिलीप के आने का समाचार-मात्र ही उसकी मुर्दा रगों में जान भर देता है-उसके पीले गाल गुलाबी हो जाते हैं। उसमें कितनी ममता-कितनी आकुलता-कितनी कातरता उमड़ पाती है। कैद' में अप्पी के चरित्र-चित्रण में लेखक ने सांकेतिक प्रयोग भी किये हैं।
"प्राणनाथ-किंग कांग ! किंग कांग ?
अप्पी-एक भयानक फिल्म का नाम है। जिसमें एक वनमानस एक सुन्दर लड़की को उठाकर ले जाता है। उसी-जैसा भयानक और निडर है यह बन्दर ......"
इसमें अप्पी के जीवन की विवशता और दमघोट स्थिति का कितना सांकेतिक चित्र है:
"दिलीप (उसके पीछे जाता हुआ)--कितने अच्छे थे वे दिन ! अप्पी-तुम्हें तो कभी याद भी न आती होगी उनकी ।"
इस छोटे-संवाद में अप्पी के मन की व्यथा, दिलीप के प्रति प्रेम और दिल की धड़कन बज रही है। ___'उड़ान' में पुरुष की तीन प्रवृत्तियाँ पात्र बनकर आ गई हैं। शंकर वह प्रवृत्ति है जिससे पागल होकर पुरुष नारी को अपनी वासना की तृप्ति करने का साधन समझता है। मदन उसे अपनी सम्पत्ति समझकर अधिकार वाहने वाला और रमेश उसको पूजा के मंदिर में देवी बनाकर पूजने वाला