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हिन्दी के नाटककार
भी अभिनय में दो घण्टे से अधिक समय की अपेक्षा नहीं । संवाद भी इन संक्षिप्त और भाषा भी अन्य नाटकों की अपेक्षा सरल, चलती हुई और चुस्त है | स्वागत किसी नाटक में भी नहीं है और 'बड़ा पापी कौन' में ही केवल गति है। वह अवश्य लम्बा है और खटकने वाला भी । 'दुःख क्यों' तो सभी ऋटियों से मुक्त है 1
बड़े नाटकों में 'कुलीनता', 'शशिगुप्त' और 'कर्ण' हैं। बड़े नाटकों में ५:- विधान की सरलता और समझदारी भी है और कठिनता और दुरूहता भी । तीनों नाटकों का आरम्भ बहुत ही प्रभावशाली ढङ्ग से होता है । 'कुलीनता' और 'कर्ण' का प्रथम दृश्य है - दर्शकों से खचाखच रंगभूमि । जिसमें राजा-रानी, सेनापति- सैनिक आदि की उपस्थित में शस्त्र प्रतियोगिता होती है । दृश्य बहुत ही भव्य, विशाल शानदार और प्रभावशाली है । 'शशिगुप्त' का दृश्य भी एक विशाल, ऊँचे पर्वत का है । 'कुलीनता' का दूसरा दृश्य है राजप्रासाद का एक दालान, जो एक पर्दे मात्र से दिखाया जा सकता 1 तीसरा दृश्य फिर विशाल है - राज - प्रासाद का सभा भवन | चौथा - एक मैदान यह मी एक बड़ा दृश्य है । इन दृश्यों के निर्माण में अवश्य कठिनाई उपस्थित होगी । एक दालान को छोड़कर सभी दृश्य विशाल हैं । इसके निर्माण के लिए समय कठिनता से मिलेगा । इनके सिवा सभी दृश्यों की सरलता से रचना की जा सकती है ।
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महान् दृश्य है | इसके बाद
'कर्ण' का प्रथम दृश्य अत्यन्त विशाल और पहला अंक आरम्भ होता है - कर्ण के कक्ष से । दूसरा पाण्डवों का महल, तीसरा हस्तिनापुर के राज- प्रासाद का सभा भवन, चौथा है कुन्ती का कक्षइनमें केवल तीसरा दृश्य ही निर्माण कौशल और समय चाहता है । शेष सभी दृश्य पर्दों से ही दिखाये जा सकते है । 'कर्ण' में केवल 'उपसंहार' के पर्दा उठा-उठाकर जो तीन दृश्य दिखाये गए हैं, इनमें पहले दो - युद्ध भूमि में युद्ध - रंगमंच पर दिखाये जाने असम्भव हैं । लेखक की अभिनय सम्बन्धी भूल का यह अच्छा उदाहरण है । वह स्वयं कहता है, "यहाँ तक का अंश सिनेमा में ही दिखाया जा सकता है ।" इसका स्पष्ट अर्थ है, यह दिखाया जाना असम्भव है । इनके अतिरिक्त 'कर्ण' का दृश्य-विधान अभिनयोचित है । 'शशिगुप्त' में भी दृश्य विधान -सम्बंधी दोष कम ही हैं। वे भी सरलता और शीघ्रता से निर्मित किये जा सकते है । युद्ध के एक-दो दृश्यों को छोड़कर शेष नाटक अभिनयोचित दृश्यों से पूर्ण है ।
अभिनय के अन्य तत्वों, कार्य-व्यापार नाटकीयता, कौतूहल, भाषा,
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