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________________ २१२ हिन्दी के नाटककार “कलेजा चीर कर कैसे दिखा दू?" अधिक उपयुक्त होता। एक और उदाहरण "सत्यभामा- इन कीड़ों को कुचले बिना अब मुझे क्षण भी विश्राम नही मिल सकता। जिन्होंने आपको बरबाद किया, उस बरबादी पर बदनाम बनाया और फिर ऐसी नीच कार्यवाई करने पर भी जिन्हें शर्म नहीं आई, उन्हें कुचले बिना मुझे कैसे शान्ति मिल सकती है ? मै मृत्यु-लोक की मानवी हूँ, स्वर्ग की देवी नहीं।" ('महत्त्व किसे') इस उद्धरण में लेखक के भाषा । संबन्धी अनेक दोष स्पष्ट हो जाते हैं। पहला वाक्य इतना शिथिल और ढीला है कि उससे न तो बोलने वाले का क्रोध प्रकट होता है, न रोष और न संकल्प । 'बदनाम बनाया' 'मृत्यु-लोक' आदि तो कमाल के अशुद्ध प्रयोग हैं। इस में पुनरावृत्ति भी है। लेखक के सभी नाटकों को पढ़ने पर लगता है, उगकी भाषा में हृदय का प्रवाह नहीं, वह मेज पर बैठकर सोच-सोच कर लिखी गई है। चलती हुई भाषा का प्रवाह इनके नाटकों में नहीं मिलता। इनके पात्र और परिस्थिति के प्रतिकूल भी कहीं-कहीं संवाद मिलते हैं। 'शशिगुप्त' में अचानक सेल्यूकस का अपनी लड़की हैलेन से पूछ बैठना और उसका बड़ी सफाई और निस्संकोच भाव से कहना कि वह शशि गुप्त से विवाह करेगी । और आश्चर्य तो यह है कि इस प्रसंग से पूर्व कहीं शशिगुप्त और हैलेन का प्रेम विकसित भी नहीं हुआ । पश्चिमी सभ्यता में चाहे कितनी ही निःसंकोचता हो, कितनी ही अलजता हो, पर पिता के सामने अचानक विवाह-प्रस्ताव अपने ही मुख से लड़की नहीं करती। पिता तो पिता अपने प्रेमी से भी लड़कियाँ विवाह-प्रस्ताव नहीं करतीं- अब तो यह एक सामाजिकता भी बन गई है कि लड़के ही पहले विवाह-प्रस्ताव करेंगे । विवाह की ' बुनियाद में जो काम-भावना की मधुरता है, उसे अनुभव करते ही एक मोहक लज्जाभ लाली दौड़ती है और शील और लज्जा युवती की जिह्वा पकड़ लेती है । इसी प्रकार का हास्यास्पद वार्तालाप नन्द और राक्षस का कराया गया है । मगध का सम्राट और लगता है कि सस्ते ढंग के स्टेज का अभिनेता बेतुकी हँसी कर रहा है। ___. नाटकों के गीत अच्छे-बुरे दोनों प्रकार हैं। कुछ गीत स्वर, संगीत, परिस्थिति के अनुसार बहुत उपयुक्त हैं, कुछ अनुपयुक्त । 'बड़ा पापी कौन' जैसे छोटे नाटक में दो पृष्ठ के गीत खटकने वाली बात हैं। 'शशिगुप्त' में १६ गाने हैं, जिनमें ८ अकेले हैलेन के। दोनों ही बातें अनुपयुक्त । और 'कर्ण' में कुन्ती और रोहिणी को गाने का रोग है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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