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हिन्दी के नाटककार हैं । राम, कृष्ण और कर्ण का चरित्र इन नाटकों में क्रमशः चित्रित किया गया है । राम और कृष्ण में अति मानवता का अंश है, तो भी उनको मानव ही अधिक रखा गया है। भगवान् राम और योगिराज कृष्ण-दोनों ही हिन्दुओं में अवतार माने जाते हैं, पर सेठ जी ने इनमें मावनव भानाए ही अधिक भरी हैं। ये दोनों कर्तव्य के प्रतीक हैं। राम कर्तव्य से अनुप्राणित होकर राज्य-सिंहासन को हँसते-हँसते त्यागकर वनवास स्वीकार करते है और रावण जैसे आततायी का वध करते हैं । कृष्ण भी कर्तव्य की पुकार पर वंशी-बट जमनातट और राधा-ऐसी प्राण-माधुरी को त्यागकर मथुरा चले जाते हैं । दोनों नाटकों का प्रारम्भ ही कर्तव्य-पालन में सफलता प्राप्त करने की चिन्ता करते हुए राम-सीता और कृष्ण-राधा की बातचीत से होता है। राम चिन्तित हैं, "देखना है प्रिये, इस उत्तरदायित्व को पूर्ण करने में मै कहाँ तक कृतकृत्य होता हूँ।" राम धीरोदत्त नायक हैं। वे सभी गुण इनमें हैं, जो भारतीय शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार धीरोदत्त नायक में होने चाहिए । कृष्ण धीर-ललित नायक हैं । कला-प्रिय, प्रेमी, नृत्य-गान में लीन, अनेक नारियों से विवाह करने वाला वीर, योग्य, शीलवान, निर्भय, उपकारी, कर्तव्य-निष्ठ, राजा, ब्राह्मण, ईश्वरांश नायक धीर-ललित कहलाता है। ये सभी गुण कृष्ण में मिलते हैं। इन दोनों ही नाटकों को मानव सिद्ध करने या कम-से-कम प्रकट करने के लिए लेखक ने इनकी मृत्यु भी दिखाई है । क्योंकि ये मानव हैं, इसलिए इन दोनों में ही मानवीय उल्लास, मानवीय चिन्ता और प्राशंका भी दिखाई गई है। ये दोनों ही वीर नायक श्राजीवन कर्तव्य-पालन में रत रहते हैं। पौराणिक होने के कारण दोनों ही चरित्रों में श्रादर्शवाद कूट-कूटकर भरा है । साधारण मानवों से तो वे ऊँचे रहेंगे ही। इनके चित्रण में रसानुभूति और साधारणीकरण वाला भारतीय रस-शास्त्र का सिद्धान्त काम करता पाया जाता है। । कर्ण भी पौराणिक चरित्र है। वह राम-कृष्ण के समान ईश्वरीय अंश या अवतार नहीं है। उसके चरित्र में भी श्रादर्शवाद और साधारणीकरण वाला सिद्धान्त लागू किया जा सकता है। वह वीर, निर्भय, दृढ़-प्रतिज्ञ मित्रवत्सल, निरभिमानी, अद्वितीय दानी, धर्मात्मा, शीलवान, विनयी, कर्तव्य-परायण, धैर्यशाली, कष्ट-सहिष्णु और महाभारत-युद्ध का प्रख्यात महारथी है। वह कुन्ती और सूर्य की सन्तान है। राजकुलोत्पन्न वह है ही। उसमें देव अंश भी है कर्ण मी धीरोदत्त नायक है । कर्ण के अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटकों के हर्ष और शशिगुप्त भी धीरोदात्त नायक है। इनमें भी भार• तीय नाट्य-शास्त्रानुसार धीरोदात्त नायक के सभी दिव्य गुण पाए जाते हैं ।