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हिन्दी के नाटककार न जाने कितनी ऊबड़-खाबड़ धरती पर चलना पड़ा है, न जाने कितनी टेढ़ीतिरछी घाटियों से होकर आगे बढ़ना पड़ा है। इतने विशाल, महान् और वयोवृद्ध समाज में न जाने कितने कथानक मिल सकते हैं, न जाने कितनी उलझनें सुलझाने की समझ प्राप्त हो सकती है। ___'कर्ण' पौराणिक नाटक है। उसकी कथा-कर्ण का जीवन स्वयं एक गम्भीर सामाजिक समस्या है। आज भी तो उस पौराणिक काल की समस्या समाज के सामने ज्यों-की-त्यों है। 'कर्ण' में दो समस्याए हैं-अविवाहित लड़की की सन्तान की समाज में क्या स्थिति हो और छोटे कुल या जाति में उत्पन्न वीर या प्रतिभावान व्यक्ति का क्या स्थान हो। यह समस्या समाज श्राज भी कहाँ सुलझा सका है। श्राज भी हम भीम के शब्द गूंजते सुनते हैं, "रे सूत, तू अर्जुन से द्वन्द्व-युद्ध करना चाहता था। यह महत्त्वाकांक्षायह यह साहस ! xxx जा, जा, अपने कुल-धर्म के अनुसार प्रतोद लेकर रथ पर बठ, सारथी-कर्म से जीविका चला।" और आज भी क्या अनेक कुन्तियाँ अविवाहित अवस्था में सन्ताने उत्पन्न करके नहीं फेंक देती। श्राज भी अनेक युवतियाँ एकांत में सोचती होंगीः "समाज में मेरी करनी का भण्डाफोड़ न हुआ था न, बच गई. हाँ, धुली-धुलाई बच गई थी न !xx अोह ! मैने माता के किस कर्तव्य का पालन किया ! सामाजिक भय ने स्वाभाविक स्नेह तक को सुखा दिया। xxxविवाह की सन्तान पति से न होकर किसी अन्य से भी हो तो भी समाज को ग्राह्य है।" _ 'कुलीनता' में एक सामाजिक समस्या को लिया गया है । अकुलीन गोंड सर्वोपरि वीर प्रमाणित होने पर भी कुलीनता के अहं का शिकार होता है । राजकुमारी रेवासुन्दरी उसको तिलक तक नहीं कर सकती। और यह सन्देह होने पर कि वह सम्भवतः यदुराय गोंड को प्यार करती है, उसे देश-निकाला दे दिया जाता है। यह कुलीनता का पाखण्ड, दुरभिमान और आडम्बर ही हमारे देश को तबाह कर रहा है । वही अकुलीन गोंड कलचुरि क्षत्रिय कुलीन विजयसिंह और चण्डपोड को सबक सिखाता है । उनको युद्ध में परास्त करता है और स्वयं राजा बनकर गोंड वंश की नींव डालता है, तब मालूम होता है इन कुलीनता के अभिमानी क्षत्रियों को। ___'दुःख क्यो', 'महत्त्व किसे' और 'बड़ा पापी कौन'–तीनों वर्तमान जीवन और समाज के चित्र हैं । 'दुःख क्यों' में रंगे सियार नेता यशपाल का चरित्र और कार्य-कलाप वर्णित हैं। समाज के सामने यह भी कम भीषण समस्या नहीं । जनता का चन्दा खा जाना । देश-सेवा नहीं, नाम या बदला