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________________ उदयशंकर भट्ट १६७ सरस्वती का हरण, कालक का प्राण-त्याग, गंधर्वसेन की मृत्यु, सरस्वती की श्रात्म-हत्या-सभी वर्णित हैं। नाटकीयता, अाकस्मिकता, अनाशितता भी अभिनय में बड़ी सहायक होती है । इसमें अचानक दर्शक उल्लास से उछल पड़ता है, रोमांच से फूल जाता है, कौतूहल से चकित हो जाता है, और आशातीत प्रसन्नता में डूब जाता है । 'रहस्य-ग्रन्थि' इन सब बातों को बढ़ाने वाली है। 'विक्रमादित्य' में यह तत्व पर्याप्त मात्रा में है। चन्द्र लेखा और अनंगमुद्रा का पुरुष वेश में चेंगी की सेना में जाना, चन्द्रकेतु का संन्यासी और चण्डांशुक का नसिंह बनना दर्शकों के कौतूहल जगाने के लिए काफी है। चन्द्रलेखा का विक्रमादित्य के वाण से मरना भी आकस्मिकता का एक बहुत बड़ा उदाहरण है। पर नाटकीयता-अचानक आशंका के विरुद्ध में घटना होना-इसमें भी नहीं है। 'शक-विजय' में भी सागर-स्त्री के वेश में सरस्वती से आकर मिलता है यह भी एक कौतूहलजनक घटना है। इनके सिवा किसी नाटक में भी नाटक और अभिनय का यह आवश्यक तत्त्व नहीं मिलता। ___भट्ट जी के प्रायः सभी नाटकों में काफी पात्र हैं। पात्रों की भीड़-भाड़ भी नाटक के अभिनय में थोड़ी-बहुत बाधा अवश्य उपस्थित करती है । 'कमला' को छोड़कर सभी नाटकों में बीस-बाईस तो प्रमुख पात्र रहते हैं और चारछः गौण । बहुत अधिक पात्रों का होना रसानुभूति में भी बाधक होता है, और चरित्र-विकास में भी। __भाषा का चुस्त और चलती हुई होना भी अभिनय के लिए आवश्यक है। इस दृष्टि से 'विक्रमादित्य' और 'दाहर' तो सर्वथा अयोग्य है । विक्रमादित्य' की भाषा तो उपमा और रूपकों से लदी संस्कृत के प्रभाव से बोझ बनावटी और नाटकीय दृष्टि से दोषपूर्ण है। 'दाहर' की भाषा विक्रमादित्य' की भाषा से स्वच्छ है, पर वह भी नाटकोचित नहीं । सगर-विजय' की भाषा कुछ संभली है। पर सब मिलकर भट्ट जी के नाटकों को भाषा चलती हुई नहीं, अंत के नाटकों की भाषा में भी भारीपन और गम्भीरता है। संवाद भी प्रथम तीन नाटकों में तो बहुत ही लम्बे-लम्बे हैं। स्वगतों की भरमार है । पद्यों में भी संस्कृत के सामान भरती की गई है। पर ज्यों-ज्यों भट्ट जी की कला निखरती गई है, संवाद छोटे होते गए हैं, भाषा स्वच्छ और चस्त होती गई है और स्वगतों का लोप होता गया है । 'मुक्ति-पथ', 'कमला' और 'शक-विजय' में वह बहुत-कुछ विकसित हो गई है, निखर गई है। अभिनय की दृष्टि से भट्ट जी के नाटक दर्शक पर प्रभाव नहीं छोड़ेंगे। वैसे 'कमला' का अभिनय उनके अन्य नाटकों से अच्छा और सफल रहेगा।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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