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________________ १७६ हिन्दी के नाटककार क्रान्ति भी की और बौद्ध दर्शन ने एक विशेष धर्म का रूप धारण किया, इसी कारण ब्राह्मण और बौद्ध धर्म में संघर्ष भी प्रारम्भ हो गया । धार्मिक संघर्ष का यह रूप ब्राह्मणों और देवदत्त तथा सिद्धार्थ के बीच दिखाया गया है। तीसरे दृश्य में ब्राह्मण न्यायालय में श्राकर न्याय की पुकार और माँग करते हैं। सिद्धार्थ और देवदत्त ने उनके यजमान को बहकाकर उसे छाग (बछड़ा) की बलि देने से विरत किया । और जब यजमान स्वयं सभा में उपस्थित होकर कहता है कि यज्ञ में हिंसा नहीं होनी चाहिए, तो ब्राह्मण चिल्ला उठते हैं, "नास्तिक सेठ सभा में उपस्थित है। धर्म के घातक इस सेठ को दण्ड देना चाहिए।" ___ यही बौद्ध-ब्राह्मण-संवर्ष 'दाहर' में स्पष्ट हो गया है । सिन्ध पर अरबी सेनाए अब्दुल बिनकासिम की अध्यक्षता में चढ़ाई करती हैं। स्थिति और समय की माँग के उत्तर में दाहर जाट, गूजर, लोहान आदि जातियों को भी बराबरी का अधिकार दे देता है। ब्राह्मण इसी से रुष्ट हो जाते हैं । बौद्ध भी देश-द्रोह करते हैं। उन्हें क्या लेना, एक ब्राह्मण राजा की सहायता क्यों करें ? समुद्र कहता है, "जब बौद्धों का राज्य ही नहीं है, फिर बौद्ध लोग उसके सहायक ही क्यों हों ? अपना भला-बुरा तो पशु भी पहचानते हैं, हम तो आदमी हैं।" सागरदत्त के समझाने पर कि बौद्ध-हिन्दू एक ही हैं मोक्षवासव कहता है, "हिन्दू भी तो हमारे लिए वैसे ही हैं जैसे यवन । क्या बौद्ध-धर्म से उनको घृणा नहीं है ? क्या वे बौद्ध-धर्म और बौद्धों को अच्छी दृष्टि से देखते हैं महाराज ?" मोक्षवासव के कथन में यद्यपि अविचार-शीलता, देश के प्रति विश्वास-घात और अदूरदर्शिता बोल रही है, फिर भी हिन्दुओं का वह पाप भी पुकार रहा है, जो उन्होंने बौद्धों का विरोध करके किया है। ब्राह्मणों के प्रपंचपूर्ण आचरण और बौद्धों के अरबियों से गठ-बन्धन के कारण सिन्ध देश सदा के लिए गुलाम हो गया। सिन्ध में किया गया राष्ट्रीय अपराध समस्त भारत के लिए घातक विष बन गया। देखते-देखते एक के बाद दूसरा प्रान्त विदेशियों के चरणों द्वारा आक्रान्त होता गया। ऐसी बाढ़ आई कि भारत का कोई स्वतन्त्र राज्य उसके सामने न ठहर सका। समस्त देश विदेशियों का गुलाम बन गया। धार्मिक वैमनस्य जब इतना भयंकर रूप धारण कर लेता है, तब यही होता है। ___ जहाँ मत-पन्थ देश के हित से ऊपर होगा, वहाँ के निवासी अपमान, अपयश, पराजय, पराधीनता का जीवन व्यतीत करेंगे। युग-युग तक वह
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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