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हिन्दी के नाटककार
मुख्य है राजनीतिक समस्या । जिस युग में 'संन्यासी' का जन्म हुआ, भारत में अंग्रेजी शासन था-एशिया में पश्चिमी राजनीतिक प्रभुत्व था और एशिया भीतर-ही-भीतर अकुला रहा था। इसलिए एशिया के उद्धार के लिए उन दिनों एशियायी-संघ-निर्माण की खासी धूम थी। अनेक भारतीय लाला हरदयाल, राजा महेन्द्रप्रताप, रासबिहारी घोष आदि अमरीका, चीन, जापान श्रादि में भारतीय स्वाधीनता के लिए प्रयत्नशील थे । 'संन्यासी' में विश्वकांत
और अहमद मिलकर काबुल में एशियायी-संघ की नींव डालते हैं। एशिया को राजनीतिक दासता से मुक्त करने के लिए । 'राक्षस का मंदिर' में सामाजिक समस्या–वेश्या-सुधार-नाटक की प्रमुख भाव-धारा है । रामलाल अपनी सभी सम्पत्ति वेश्या-सुधार के लिए दे जाता है। मुनीश्वर और अशगरी मातृ-मंदिर-भवन की स्थापना करते हैं-यह प्रेमचन्द के 'सेवा-सदन' का ही दूसरा नमूना है। विशेषता इतनी है कि इसमें चुम्बन और आलिंगनों का • दान खूब दिया गया है। ___ इन दो बृहद् राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं के साथ ही अपने नाटकों में मिश्र जी ने जीवन की अन्य छोटी-छोटी बातें भी चित्रित कर दी हैं । वे छोटी होते हुए भी समाज की अावश्यक और बुनियादी समस्याएं हैं, जिन पर समाज का भवन खड़ा है-उनका हल न किया गया तो यह भवन लड़खड़ाकर गिर जायगा। समाज के उस घुन को नाटकों में दिखाया गया है, जो धीरे-धीरे हमारे जीवन का स्वास्थ्य छलनी कर रहा है। चुनाव में किस प्रकार भ्रष्टाचार होता है, मनुष्य अपना कर्तव्य भूलकर कैसे अपने लाभ की आशा में समय नष्ट करता है। चुङ्गी के स्कूलों के अध्यापकों की स्थिति क्या है । चेयरमैन बनकर पहले अपनी सड़क बननी चाहिए-श्रादि बातों पर 'मुक्ति का रहस्य' में अच्छा प्रकाश डाला गया है। 'सिंदूर की होली' में रिश्वत का.जो दारुण रूप दिखाया है, वह भी समाज के सामने एक भीषण समस्या है। ___ . नारी और नर का ज्यों-ज्यों सामाजिक सम्पर्क बढ़ा, प्रवृति के अनुसार जीवन के उपभोग को कामना भी बढ़ी । समाज के कान चौकन्ने हुए और नैतिक बंधन भी कठोर होते गए—और प्राज व्यक्ति और समाज में काफी कशमकश है। नारी का स्वतंत्र जीवन विकास भी आज के समाज के सामने एक प्रश्न है । नारी की चिरन्तन समस्या को मिश्र जी ने अपने नाटकों में श्रादि से अंत तक लिया है। 'संन्यासो' में यदि किरण असफल जीवन का चित्र है, तो मालती बुद्धिवादी समझौता-पसंद नारी का रूप । नारी को