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लक्ष्मीनारायण मिश्र
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दृष्टियों से आप पश्चिम से प्रभावित ही नहीं, उसका अनुकरण करने
वाले हैं ।
समाज के स्तम्भ
संन्यासी
राक्षस का मंदिर
मुक्ति का रहस्य
राजयोग
सिन्दूर की होली
श्राधी रात अशोक
गरुड़ ध्वज
नारद की वीणा
गुड़िया का घर
वत्सराज
रचनाओं का काल - क्रम
सन् १९०२ ई० (अनुवाद)
१६३१
१६३१
१६३२,
१६३४
१६३४,
१६३७,
१६३६
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बुद्धिवाद का प्रवर्तन
लक्ष्मीनारायण मिश्र बुद्धिवादी कलाकार हैं। अपने नाटकों द्वारा बुद्धिवाद के आधार पर समाज और व्यक्ति की समस्याओं का सुलझाव उपस्थित करने की ईमानदार चेष्टा इन्होंने की है । नाटकों में चली आती पुरानी काल्पनिक भा कता को आपने त्याग दिया है। कोरी भावुकता को श्रापने केवल अनर्गल और व्यर्थ बताया है । 'मुक्ति की रहस्य' में दी गई कैफियत, 'मैं बुद्धिवादी क्यों हूँ' में श्राप लिखते हैं, " लेखक की सबसे बड़ी चीज उसकी भावुकता नहीं, उसकी ईमानदारी है - वह साधक है, दलाल नहीं ।...... हमारे अधिकांश लेखक जिन्दगी की ओर से आँखें बन्द करके कल्पना और भावुकता का मोह पैदा कर, जिस नये जगत् का निर्माण कर रहे हैं, उसमें जिन्दगी की धड़कन नहीं है । मनुष्य का रक्त-मांस भी नहीं मिलता । शायद मोम के रँगे पुतलों से लेखक जो चाहता है, कराता है लेखक जब चाहता है, हँस देता है, रो देता है, व्याख्यान देने लगता है- - या प्रेम करने लगता है— उसकी अपनी कोई सत्ता नहीं । कल्पना का जीव कल्पना से आगे नहीं
बढ़ता ।"
कोरी काल्पनिक भावुकता का तिरस्कार करके मिश्र जी ने बुद्धिवाद को