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हरिकृष्ण 'प्रेमी'
१३१ परिस्थितियों के प्रकाश में प्रेमी जी के नाटकों के पात्रों का अध्ययन करना पड़ेगा।
सभी नाटकों-'रक्षाबन्धन', 'शिवा-साधना', 'मित्र', 'प्रतिशोध' 'उद्धार'-के नायक भारतीय नाट्य-शास्त्र की दृष्टि से धीरोदात्त हैं । सभी अपने-अपने भू-खण्ड के निवासियों के आदर्श हैं। प्रायः उन सभी नायकों में समान गुण पाये जाते हैं। जन्म-भूमि की भक्ति, वीरतापूर्ण अहं, कुल-वंश का अभिमान, सामन्ती गर्व, बलिदान की भावना निर्भयता और क्षमा आदि गुण किसी-न-किसी रूप में सभी में पाये जाते हैं। हिन्दू नायकों में धर्म का भी गर्व मिलता है और मुसलमान पात्रों में इस्लाम का अभिमान भी पाया जाता है। पर लेखक की प्रतिभा ने धर्म का उन्ज्वल रूप भी उपस्थित किया है । 'मित्र' में रत्नसिंह कहता है, “कर्मयोगी भगवान् कृष्ण के वंशज जैसलमेर का राज-वंश भविष्य के प्रति अाँखे मूदकर नहीं रह सकता। . वह विनाश के साथ लोहा लेने को प्रत्येक क्षण प्रस्तुत रहेगा।" इसी सामन्ती कुलाभिमान को श्यामा प्रकट करती है, "वह (विजयसिंह) सीसौदिया-वंश में उत्पन्न होकर भी मेवाड़ के राज-महलों को छोड़कर जंगलों रह रहा है । किसलिए? जानती हो ? आपके थोथे वंशाभिमान और समाज के अन्याय के कारण।" ___"वीरता, साहस, त्याग, और बलिदानों की गौरव-गाथाओं से परिपूर्ण मेवाड़-राजवंश के वंशज होने का ज्ञान हमारे को क्या हानि पहुंचाता ?"दुर्गा पूछती है। ___"राजकुमारत्व का मान हमारे में उच्चता की भावना भर देता और उसे प्रत्येक देहाती स्त्री-पुरुष को आत्मीय मानना कठिन हो जाता।" सुधीरा कहती है। 'उद्धार' के इस कथोपकथन से भी सामन्ती कुलीनता के अभिमान का चित्र सामने आ जाता है । 'उद्धार' प्रेमी जी का बहुत बाद का नाटक है, इसलिए इसमें यह सामन्ती वंशाभिमान कम हो गया है। जन-मत का मान बढ़ता गया है। सामन्तशाही किसानों-निर्धनों आदि के निकट आती गई है और प्रजातंत्र की भावना भी स्पष्ट होती गई है। ___ सभी ऐतिहासिक नाटकों के नायकों में आदर्श गुण हैं। वे असाधारण मनुष्य हैं । 'रक्षा-बन्धन' का नायक हुमायूँ आदर्श पुरुष है। नीति, धर्म, मानवता, दया, उदारता का वह अवतार है। अपने राज्य और व्यतिगत सुरक्षा को खतरे में डालकर भी वह कर्मवती की राखी स्वीकार कर लेता है। "हमें दुनिया की हर किस्म की तंगदिली के खिलाफ जिहाद करना चाहिए ।