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हिन्दी के नाटककार उधर पागल हुई दौड़ रही हैं, ग्रह भी इसमें स्पष्ट है। विन्दु पर, आधुनिक शिक्षा पाकर, फिल्मी अभिनेत्री बनने का ख़ब्त बुरी तरह सवार है। साधन किस प्रकार अाशाए दिलाता है, वह जीवन किनना गन्दा है-शराब पीना जहाँ श्रावश्यक है, लाज-शर्म को धता बताना अनिवार्य-यह भी 'अङ्ग र की बेटी' में दिखाया गया है। इस फिल्मी चकाचौंध में पड़कर आज भी अनेक महिलाएं वहाँ जाकर रुपया कमाने की धुन में अपना घर उजाड़ लेती हैं। वैसे यह कोई इतनी बड़ी समस्या न सही, पर अनेक जीवनों के लिए उसने भी तबाही लाई है।
'राजमुकुट' यद्यपि ऐतिहासिक नाटक है, तो भी उसमें एक गम्भीर समस्या की ओर ध्यान दिलाया गया है। यदि राजा नीति-हीन, दुराचारी, अनाचारी, प्रजा-पीड़क और अशक्त हो तो उसे हटा देना चाहिए। उसके विरुद्ध विद्रोह करना अपराध नहीं, शुभ कार्य है-धर्म है। विक्रम मेवाड़ का अनाचारी और विलासी राजा है उसे राज्य-सिंहासन से उतारने के लिए माँग करते हुए एक सरदार कहता है, "विक्रम सिहासन से उतार दिया जाय' और कर्मचन्द्र, जयसिंह तथा अन्य सरदार उसे गद्दी से उतार कर कारागार में डाल देते हैं। ऐसे देश में, जहाँ राजा को परमेश्वर का अंश समझा जाता है, वहाँ उसे राज्य-च्युत करके कारागार में डाल देना बहुन बड़ी बात है और इसका महत्त्व तो श्राज और भी बढ़ गया है, जब आज़ाद भारत में अनाचार और भ्रष्टाचार का बोल-बाला है; जनता अन्न को तरसती है, जीवन को केवल थामे भर रखने की वस्तुप इतनी महंगी होती जाती हैं कि आगे क्या होगा, कुछ भी पता नहीं।
सिन्दूर-बिन्दी' में भी दाम्पत्य जीवन की बहुत ज्वलन्त समस्या ली गई है। हम हिन्दू-समाज में रात-दिन ऐसी घटनाए देखते हैं कि एक हिन्दू लड़की कहीं किसी की धूर्तता का शिकार हुई, समाज से वह बहिष्कृत कर दी गई और उसके लिए न पनि, न भाई और न पिता के दिल में स्थान है, और न घर में ही । परिणाम होता है, वह या तो बाजारों की शोभा बढ़ाती है या किसी अन्य सम्प्रदाय की शरण में जाती है। श्राज भी पाकिस्तान से आई अनेक लड़कियाँ कैम्पों में पड़ी हैं, पर उनसे विवाह करके समाज में स्वस्थ जीवन बिताने को बहुत कम लोग तैयार हैं। कुमार और विजय का मिलन इस समस्या का सुलझाव उपस्थित करता है।
पात्र--चरित्र-चित्रण जीवन के जितने विस्तृत और विभिन्न क्षेत्रों से नाटकों के कथानक लिये