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________________ [हिन्दी बेन साहित्य का इसकी भाषा में अपभ्रंश शब्दों का आधिक्य है, परंतु रचनासरणी हिन्दी ही है । मालूम होता है कि कोट कांगड़ा की ऋषभमूर्ति को लक्ष्य करके यह रचा गया है। 'पार्वजिनविज्ञप्तिका' दस छंदों का एक छोटा-सा सुंदर स्तवन है। नमूना देखिये "जय जय पास' जिणेसर, णिरुवमरूव परमकारुणिय । जय जय सम्यगुणायर,जय सामिय सयल गुणणिलय ॥ २ ॥ जय सुतुम जय सामियं, अरकलिय णिरामयं चिरंजयसु । गंद सुपाव सुसोह, लहसुजसं तिहुवणे सयल ॥ १०॥' श्री अजितनाथशांतिविवाहलास्तोत्र-बत्तीस छंदों में पूर्ण हुआ है, जिनमें श्री अजितनाथ और श्रीशान्तिनाथ तीर्थक्करों की जोवनघटनाओं का वर्णन किया गया है। कुछ पद्य इस प्रकार हैं "मंगल कमला कंदुए, सुखसागर पूनिम चंदुए । जग गुरु अजिय जिणंदुए, संतीसरु नयणाणंदुए ॥१॥ वे जिणवर पणमेविए, वे गुण गाइ सुसंसेविए । पुन्य भंडार भरेसुए, मानवभव सफल करेसुए ॥२॥" x xxx बिहुं षमि दमि धारिम धरीए, विहुं मोह मयण मद परिहरय । बिहुं जिण माण सयाणए, विहं पामिय केवल नाणए ॥२५॥ xx वे उच्छव मंगल करण, वे सयल संघ दुरियहं हरण । वे घर कमल वयण नयण, वे सिरि जिणराय भवण रयण ॥ ३ ॥ इम भगसिहिं भोलिम तणीए, सिरि अजिय संति जिण थुइ भणिए । सरणइ विहुं जिण पाए, सिरि भिरनंदण उक्साए ॥३२॥ १. पार्श्व। २. गुणाकर। x -
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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