SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ] हिन्दी जैन साहित्य का ___ अन्तिम विशेषता अपभ्रंशभाषा के लिये अनूठी है और वह ऐसी महत्त्वपूर्ण है कि उसका अनुकरण आजतक साहित्य में होता आ रहा है । कुछ लोगों का यह खयाल है कि तुकबद्ध छंद का प्रयोग भारतीय कवियों ने मुसलमान कवियों से सीखा है, किन्तु इस बात के ठीक निर्णय के लिये भारतीय साहित्य की खूब खोज करना आवश्यक है। हिन्दी भाषा की उत्पत्ति यद्यपि किन्हीं विद्वानों ने विक्रम संवत् ७०० से मानी है, परन्तु उन्हें चंदबरदाई (सं० १२२५१२४९ ) से पूर्व का एक भी अवतरण नहीं मिला है । सं० ७७० में किसी पुष्य नामक कवि द्वारा भाषा के दोहों में एक अलंकार ग्रन्थ लिखे जाने का उल्लेख मिलता है, परंतु यहाँ भाषा से भाव प्राकृत माषा का हो सकता है, क्योंकि एक समय प्राकृत भी भाषानाम से संबोधित की जाती थी। सम्भवतः यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा का हो १. शिवसिंह सरोज के कर्ता और मिश्रबन्धुओं के इस मत का उम्लेख और उसपर अपना विवेचन पं० नाथूरामजी प्रेमी ने अपने हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास के पृष्ठ १६ पर किया है। इतिहासमहोदधि स्व. काशीप्रसादजी जायसवाल ने नागरी प्रचारिणी पत्रिका में 'पुरानी हिन्दी का जन्मकाल' शीर्षक लेख में हिन्दी का जन्मकाल सातवी शताब्दि बतलाया था। किन्तु बा. श्यामसुन्दरदासजी ने अपनी हिन्दी भाषा और साहित्य' नामक कृति में एवं पं. रामचन्द्रजी शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में पुरानी हिन्दी का जन्मकाल यथाकिंचित् १२वीं शतान्दि का मध्यभाग ठहराया है, (देखें जैनसिद्धांतभास्कर, ४. २०६ ) 14. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने भी 'ना. प्र. पत्रिका' ( भाग २ २ पृ. १७२-101) में पुरानी हिन्दी' शीर्षक एक खोजपूर्ण लेख
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy