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संक्षित इतिहास]
२४६ ___ कवि ठकरसी (पृ०६८) कृत 'कृपणचरित्र' के अतिरिक्त उनकी दूसरी रचना 'पंचेन्द्रियबोल' भी है, जिसकी एक प्रति नयामंदिर दिल्ली के शास्त्रभंडार में है। इसे कवि ने सं० १५८५ में रखा था। श्री पन्नालाल जी ने इसकी प्रतिलिपि करके भेजने के कृपा की है। कवि ठकरसी गेल्ह अथवा घेव्ह के सुपुत्र थे, गुणधाम थे और विवेकी विद्वान थे। उनकी यह दूसरी रचना यद्यपि छोटी है, परंतु सुन्दर, शिक्षाप्रद और प्रसादगुणसम्पन्न है। प्रत्येक इंन्द्रिय की वासना को उसमें सुन्दर रीति से निस्सार भोर भयावह चित्रित किया गया है। केवल स्पर्शेन्द्रिय की विषमता का चित्रण देखिये
"वन तरुवर फल सउं फिरि, पय पीवत हुस्वच्छन्द । परसण इन्द्री प्रेरियो, बहु दुख सह गयन्द । बहु दुखं सहे गयन्दो, तसु होइ गई मति मंदो। कागद के कुंजर काजै, पडि खरे सक्यो न भाजै ॥ तिहिं सही घणी तिस भूखो, कवि कौन कहे तसु दूखो।"
निःसन्देह भूख के दुख को कौन कहे ? आज भूखे भारत में वैसे अनेक भुक्तभोगी हैं ! भूख लगे तो सत्त्व टल जाय ! बेचारा हाथी कौन बिसात ? किन्तु स्पर्श इन्द्रिय की वासना ने उसे यह दुख भुला दिया। वह वासना में फँसा और गुलाम बना, उसके पैरों में सांकल पड़ी और अंकुश के घाव सहे उसने
"बांध्यो पाग संकुल घाले, सो कियो मसकै चाले । परसण प्रेरहं दुख पायो, तिनि अंकुश घावा धायो ।” हाथी पशु है-मानव उससे श्रेष्ठ प्राणी है । उनमें भी महापुरुष और भी श्रेष्ठ हैं। शङ्कर, रावण और कीच क जगप्रसिद्ध है।