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________________ २३७ संक्षिप्त इतिहास] ___ २३७ णरनाथ किमु बलि भोज विकमु दुख दवन बिधना करयौ ॥ असरण सरण किमु विजय पंजर रोरु भंजनु धण भन्यो। सिरिमाल कुल प्रतिपाल भारहमल्ल वंसु समुद्धन्यौ ॥ १२१ ॥ रहु छंद मत्त अडसहि, पुणु इक दोहा ठवऊ विसम पाय दह पंच जानहु । वीय चरण वारसहि तुरिय पाय दह इक्क माणहु, इम नवपय पयेउट्ट बहु ॥ दिण दिण दाहण णववल्ल, सिरीमाल वंसुद्धरण भूपति भारहमल्ल ॥१२२॥ जासु पढ़मइ वंस रजपूत, श्री रंक वसुधाधिपति जैनधर्मवर कमल दिनकर; तासु वंस राक्याणि, सिरीमाल कुल धुर धुरंधर, तासु परंपर पुहमि जसु । कोदी सहस णवल्ल सवा लक्ख रवि उग्गवइ, भूपति भारहमल ॥ १२३ ।।। कुंडलिया गुहयण मुणबु चस्वालह सउमत्त, दोहा लक्खणु पढम पढि अद्धं वत्थु पयत्त । अद्धं वत्थुपयत्त पुणुवि उल्लाल भणिज्जइ, इग्गारह कल विसमचरण सोरह भणिज्जइ । पुणु तेरह समचरण जमक सम विविदल ललिया, भूपति भारहमल्ल एहु लक्खणु कुंडलिया ॥ १२४ ॥ मानहु मौज समुह हद, भारहमल्ल गरिंदु । उमगि उमगि घणघोरि जिम वकसतु हय गयवृंद ॥ वकसतु हय गयवृद, दाण दिज्जहि दिण अविरल काहू सषुलासी पि काहू मुकताहल, नर मत करहुँ विषाद; भागु अपणो पहिचाणहु, यह समुदुसिरि मालु रतन चौदह णिधि सातहु ॥ १२५ ॥ छप्पय छंदु फर्णिदु पढम पयवत्तु भणिज्जा । पुणु मलालइ जुतु देस भाषा विरज्जा। अह छम्भास णिवासु दोसु णवि कोइ गणिज्जा। भखरडंबर सरस जम मुखडस लिहज्जह ॥ बावण सउ विमत्तह मुणहु तरलतुरिय, जिम अगमगम । कुलतारण भारहमल्ल जसु, पढत परम रस अमिय सम ॥ १२ ॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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