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ग्रन्थ कर्ता ने यह दिया है कि " नाम लेने से मृत्ती देखने में अधिक (ज्यादा) नफा है जैसे कि यौवनवती (जुवान) स्त्री आत सुन्दरी शृङ्गार सहित हो तो उसके नाम लेने से तो थोड़ा काम जागता है और प्रत्यक्ष सी के तथा स्त्री की मूर्ती देखने से बहुत काम जागता है" उत्तर पक्षी की तर्क हे विचार मानो ! अब देखना चाहिये कि इस जवाब के देनेवाले को और कोई शुद्ध जवाब नहीं मिला जो विराग भाव अर्थात् वैराग्य का हेतु सराग भाव पर उतारा है, सो बिलकुल अयुक्त है क्योंकि वैराग्य तो क्षयोपम भाव है। तथा निज गुण अर्थात् आत्मगुण है और काम काजागना उदय भाव है तथा परमगुण अर्थात् कर्म योग्य है. सो क्षयोपशम भाव और उदय
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