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कुशनियंठा न पाईये इति सूत्रथकी विरुद्ध २२ । ऐसे २ अनेक परस्पर विरुद्ध और अनेक शास्त्रार्थ के विरुद्ध और अनेक विलकुल ही झूठ जैन तत्वादर्श ग्रन्थ में लिखे हैं सो हम कहांतकलिखें। ये तो थोड़े से वन्नगीमात्र इस पुस्तक में लिखे हैं। और फिर देखियेगा कि जैनतत्वादर्श ग्रन्थ के लिखने की मिहनत का सार क्या निकला है जैसे कि पत्र २९४ वें पर लिखा है कि किसी प्रच्छक ने प्रश्न किया कि प्रतिमा के पूजन में क्या लाभ (नफा) है इस प्रश्न का उत्तर ग्रन्थ कर्ता ने यह दिया है पोथी पलंग पर रखते हो
और चौंकी पर माथे पर रखते हो और अच्छे वस्त्र में बाधते हो इसका क्या लाभ (नफा) है ? उत्तर पक्षी की तक० देखो जिस प्रतिमा
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