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४७९ वें पर लिखा है कि वृक्ष की ध्वजा की और मंदिर के शिखर की विचले दो पहर की छाया पड़े वहां बसे तो हानि होय और फिर ऐसा लिखा है कि जिनेश्वर की जिधर दृष्टि होवे उधर बसे नहीं । तर्क • कस्मात् अर्थात् क्यों न बसे जो भगवान् की दृष्टि मे न | वसे तो और इस्से अच्छे स्थान में कहां बसे यह तो प्रगट ही लोकों में कथन है कि सत्पुरुष तथा साहूकार जिधर कृपा दृष्टि (मेहर की नजर करे ) उधर ही पूर्ण ( निहाल ) कर देवे और जिधर दुर्दृष्टि ( कहर की (नजर) करे उधर ही नाश कर देवे सो तुम्हारे | लेख से तो भगवान् सदैव ( हरवक्त ) तीव्र दृष्टि (क्रूर नज़र रहते होंगे क्योंकि तुमने लिखा है कि भगवान की दृष्टि की तरफ, न बसे