________________
( ४० ). नहीं माना है, तथापि तुम्हारे शास्त्रों में ठाम२ बीतराग देवस्थावर बनस्पति आदिक में सूच्यग्र समान में भी असंख्यात तथा अनन्त ही जीव कह गये हैं इस कारण तुम्हारा वनस्पति आदिक की हिंसा में धर्म कहना पूर्वक मिथ्यातियों के तुल्य ही श्रद्धान है और यह तो हो ही नहीं सकता है कि मिथ्यातियों को हिंसा में धर्म कहना बंध्यापुत्रवत झूठ है
और सम दृष्टि को हिंसा में धर्म कहनासत्य है जैसे कि लायकवन्द इजततदार और उत्तम कुलोत्पन्न विवेकी पुरुषों को तो शराब पीना, चोरी करना, और गाली देना युक्त है और लुच्चों को नंगों को और हीनाचारी नीचों को अयुक्त है सो हे मत मस्तो ! विचार कर देखो कि तुम्हारा लिखा हुआ तुम्हारे ही कहने बमूजिब परस्पर विरुद्ध है ॥
-