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और अपने व्यवहार बमूजिब बुद्धि के अनु-सार ग्रंथ रचाने लग गये और पूर्वक जिन बिम्ब प्रतिष्ठा आदि कराने लग गये और तिस समय में जो कोई साधु तथा साध्वी तथा श्रावक वा श्राविका प्राचीन सूत्रानुसार क्रिया साधक थे उनकी हीला निंदा करने लग गये यह कथन सोला स्वप्न के अधिकार में खुलासा है इति ॥
और भगवंत श्री ५ महावीर स्वामी जी के पीछे १७० वर्ष के लगभग ७ सप्तम पाट श्री भद्रबाहु स्वामी जी के पीछे संपूर्ण १४ पूर्व का ज्ञान तो विछेद गया क्योंकि स्थूल भद्रजी १० पूर्व के पाठी हुए हैं और स्वप्नों के अधिकार में भी लिखा है कि भद्रबाहु स्वामी के पीछे श्रुतकेवली नहीं होवेंगे