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विद्याधरचक्रवर्ती हुआ फिर तीन सन्ध्यामें सर्व तीर्थ प्रतिमा को भेट आता रहा वहां इन्द्र ने महेश्वर नाम दिया और विद्या के ज़ोर से प्रच्छन्न होके सैंकड़ों कुमारियों से मैथुन सेवता रहा और उज्जैन नगर के चन्द्र प्रद्योत राजा की शिवादयी पटरानी को छोड़ सब रानियों से मैथुन सेया और उज्जैन की रहने वाली उम्मा वेश्या के आधीन कामासक्त रहा तो फिर राजा ने खबर पाकर वेश्या को विश्वास देकर उसका अच्छी तरह से सब भेद लेकर उम्मा समेत उसे मार दिया
और उसकी विद्या उसके नन्दीश्वर चेले में प्रवेश करी और उसने लोकों को डराकर अपने गुरु के उम्मा सहित मैथुन की पूजा कराई भी लिखी है, इत्यादि ॥ सो हे बुद्धि
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