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अव्वल तो निरञ्जन निराकार जो होगा सो कुछ नहीं करेगा क्योंकि वह आकाशवत् है, सो करने धरने की शक्ति तो आकार वाले को है निराकार को फुरना नहीं और दूसरे जव स्वसिद्ध है तो फिर सृष्टि रचने का और खोने का परिश्रम क्यों उठावै और क्यों प्राणियों को सुख दुःख की उपाधि में गेरे
और जो ऐसे कहोगे कि सुख दुःख उन के कर्मों के बमूजिब देते हैं, तो उन के कर्म रहें फिर ईश्वर को क्यों मानते हो इत्यादि तथा संवेगी लोग कहते हैं याने जैन तत्वादर्श ग्रन्थ में आत्मारामजी लिखते हैं कि आवश्यक में लिखा है कि चेड़ा राजा की छठी बेटी सुज्येष्ठा नाम थी उस ने कुमारी ने ही योग धारण किया था फिर उसे