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चाहिये सो यहां से लेजाया करो अथवा मैं दान दूंगा तो लोक मेरी बड़ाई करेंगे अपितु निर्जरा मोक्षार्थ उत्साह सहित दान देवे (सो) इस रीति से जैनधर्म की प्रभावना होती है ॥ इति चतुर्थ शिक्षा व्रतम् ॥ इति १२ व्रत
सामान्य भावः समाप्तः॥ और जो कोई पृच्छक नर ऐसे कहे कि तुम । ने यह पूर्वक कथन कौन से सूत्र की
अपेक्षासे इस ग्रन्थ में लिखे हैं तो उसको यह उत्तर है ॥ | उत्तरम्-अरे भाई ! हम तो सूत्रों के नाम, पूर्वक कथन के साथ ही लिखते चले आये हैं।
पूर्वपक्षी-सूत्रों में तो इस रीति से कथन नहीं है।