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निर्दोष मासूक अन्न पानी देवे परन्तु ऐसे न करे कि १ प्रथम जो फासूक अर्थात् अमि आदिक से तथा पीसन कूटन प्रमुख से निर्जीव पदार्थ हो चुका है तो फिर उस को सुचित फल फूल बीज आदिक ऊपर रखना अपितु न रक्खे । और २ दूसरे सुचित वस्तु करके फासूक वस्तु को ढके नहीं क्योंकि जो ऐसे रक्खे तो उस को साधु महा पुरुष के पडिलामने की दान लब्धी कैसे होगी
और उसकी भावना, बिनति भी निष्फल होजायगी क्योंकि आहार पानी तो सदोष स्थान में स्थापित है तो फिर भावना काहे की भाता है विष मिश्रित पक्वान्न से मित्र के जिमाने की इच्छावत् । तो फिर श्रावक को उपयोग चाहिये किं सुचित और अचित
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