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८ कोई रंक दुःखित जन याचक उदर पूरण के लिये रोटी आदि पदार्थ की प्रार्थना
करे तो उस का भी अपमान न करे क्योंकि || करुणादान भी पुण्य खाते में है और अपमान करने से दया धर्म की हीलना भी होती है इत्यर्थः ॥
९ फिर रसोई जीमने को घर में आते भये साधु मुनिराज को आहार पानी की विनति करे सो असे कहे कि हे महराज ! हमारे पै अनुग्रह करो भवसागर से तारो क्योंकि भाव दृष्टि में तथा रूप समणकुं। एपणीक मासूक अहार पाणी पडिलामतां महा निर्जरा होती है ।।
और जो पुण्य कहते हैं वह द्रव्य दृष्टि हे उन को परमार्थ की खबर नहीं है क्योंकि
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