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से भी है परन्तु यह पाठ सूत्रानुसार ठीक है ॥ और फिर दो वार पूर्वक विधि से
“ नमोत्थुणं " पढे ॥ इति समायक विधिः | और जो समायक पडिकमणे का अवसर न |होय तथा समायक पडिकमणा आवता न
होय तो थोड़े काल का आश्रव का त्याग | अर्थात् संवरही करले अथवा एक दो नवकार की माला ही पढ़ लेवे और चौदह नेम का स्वरूप जानता होय तो चौदह नेम यथा शक्ति से करे जैसे कि मैं १ आज इतने सुचित्त उपरंत न खाऊंगा और २ इतने के | उपरन्त न खाऊंगा इत्यादि । अथवा आज || भाड़ का भुना न खाऊंगा, अथवा इतनी हलवाई की दुकान के उपरन्त वस्तु न खरीदूंगा, अथवा आज अमुक वाणिज्य न करूंगा,