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जो प्रति क्रमणा अर्थात् पडिकमणा आता । होय तो पडिकमणा करे ॥ और देवगुरु धर्म
की स्तुति रूप पाठ करे और धर्म चर्चा करे परन्तु समायक में निन्दा विकथा संसारी कार विहार नाते रिश्ते का ज़िकर न करे ॥ फिर समायिक की मर्यादा पूर्ण हुए थके समायक पारणे में प्रथम इच्छा कारण का पाठ
और तसोत्तरी का पाठ पढ़के लोगस्स उज्जो यगरे का पूर्बक ध्यान करे फिर समायक पारणे का पाठ पढ़े सो यह है समायिक व्रत के विषे जो कोई अतिचार लागा होय ते में अलोउं मण दुप्पड़िहाणे वय दुप्पड़िहाणे कायडुप्पड़िहाणे सामाइयस्स अकरणयाए समाइयस्स अणवद्रियस्स करणया तस्समिच्छामि दुक्कडं ७ और इस पाठ की भाषा और तरह