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मरुअ मणत मक्खय मब्बा वाह मपुणं रावति सिद्धि गइ नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं ॥ ९ ॥ ६ इस पाठ के पद ३० संपदा ९ गुरु अक्षर ३० लघु अक्षर | २४४ सबै अक्षर २७४ ॥
इस पाठ को जीमणा (सज्जा) गोडा निमा के और बामां ( खब्वा) गोडा खड़ा करके और दोनों हाथ जोड़ के वामें गोडे, पर धरके पढ़े और फिर दूसरे इसी पाठ को पढ़े परन्तु अन्त के दूसरे पद को ठाणं सपावियो का मिस्स जैसे कहे क्योंकि प्रथम पाठ में तो सिद्धों को नमस्कार होती है और दूसरे पाठ में अरिहंतों को नमस्कार होती है इति ॥
इस विधि से समायक के काल की मर्यादा तक समायक वन्त होके विचरे और